Wednesday, January 19, 2022

ना समझो हमें लाचारी भाई (चौपाई छंद )



ना समझो हमें लाचारी भाई।

नारी है नहीं बेचारी भाई। 
समझो ना हमें लाचारी ‌भाई।।
सुख की हैं अधिकारी भाई।
ना समझो हमें लाचारी भाई।।
जन्म लेते ही मत फेंको हमको।
जीने का भी हक दो हमको।।
हमको भी तुम दूध पिलाओ।
जहर  नहीं तुम हमें खिलाओ।।
समानता की हम हैं अधिकारी।
ना समझो तुम हमें लाचारी।।
नारी ने नर को जनम दिया है।
पाल-पोस कर बड़ा किया है।।
नारी का सम्मान न करते।
ना ही तुम रखवाला बनते।।
क्यों हम लगतीं तुझको भारी।
ना समझो तुम हमें लाचारी।।
नारी है ममता की मूरत। 
ममतामई है इसकी सूरत।।
नारी देकर अपनी माया।
निर्माण किया  पुरुषों की काया।।
नारी ही है माता प्यारी।
ना समझो तुम हमें लाचारी।।
नारी घरनी और नारी भरनी।
नारी ही है दुःख की हरनी।।
नारी वरनी और मनहरनी।
नारी ही है सुख की करनी।।
तुम पर हैं बलिहारी नारी। 
ना समझो तुम हमें लाचारी।
नारी की महिमा बड़ी निराली।
मन की वेदना हरने वाली।।
बिन नारी घर भूत का डेरा।
दुख-दारिद्र का वहाँँ बसेरा।।
ईश्वर की है यह रचना प्यारी।
ना समझो तुम हमें लाचारी।।
हर जगह नारी पांव बढ़ा कर।
चलती पुरुषों से कदम मिलाकर।।
दुख-परेशानी-को पीछे ठेलती।
 बाधाओं को छोड़ निकलती।
ना हारी थी,ना है हारी नारी।
ना समझो तुम हमें लाचारी।।
            सुजाता प्रिय 'समृद्धि'
              स्वरचित, मौलिक

1 comment:

  1. नारी शक्ति ई महिमा बढाती बढ़िया रचना प्रिय सुजाता जी |संसार के समस्त दायित्वों का सत्तर प्रतिशत भार वहां करने वाली नारी लाचारी और बेचारी नहीं केवल संस्कारी है इसी लिए वह मौनधारी है |

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