Thursday, January 13, 2022

मैं पतंग हूं


भैया मुझे नहीं पहचानते। क्यों पहचानोगे ? मैं अब बहुत कम नजर आती हूं।कम उड़ती हूं।ना मैं तितली हूं ,ना  मैं पंछी हूं। ना विमान हूं ,ना तुफान हूं। लेकिन आसमान में उड़ती हूं।ना मेरे पंख है ,ना पांव है ना हड्डी है ना पसली है।ना ही मेरे मांस-खून है ना चमड़ी है।ना ही मैं कुछ खाती हूं ना पीती हूं।ना सांस लेतीे ना सोती-जागती। फिर भी मैं नटखट दौड़ती फिरती हूं झटपट। मेरी भी कुछ पहचान है। देश-विदेश के लोग मुझे जानते हैं।कि मैं कौन हूं। इसलिए तो मैं मौन हूं। मुझे पहचानो भैया ! मुझे याद करो भैया। मुझे याद करो। मैं आज भी तुम्हारे हौसलों से उड़ान भरने को तैयार हूं। तुम्हारी मजबूत इरादों के साथ दूर क्षितिज में विचरण कर सिर्फ और सिर्फ तुम्हारे नाम एवं पहचान को समेटना चाहती। तुम्हारी आकांक्षाओं में सफलताओं के रंग भरने।
                 सुजाता प्रिय समृद्धि

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