Tuesday, January 18, 2022

निगोड़ी पूस के बरसात (मगही भाषा)



निगोड़ी पुस के बरसात

सावन में बरसे जब बदरिया
             सब जन के मन भाबे।
हा़य निगोड़ी पूस महिना में,
              बरस के बड़ी सताबे।

धुइयां ऐसन उड़े कुहासा,
              आसमान में लहराबे।
हड्डिया में समा के हमनी के
              इ तो औकात बताबे।

भींग गेलै जराबन के लकड़ी,
                कैसे जोड़िए चुल्हा।
हाथ- गोड़ सब कंपकंपा रहलै,
               दुखा रहलै ह कुल्हा।

बोरसी भींगलै,भुस्सा भिंगलै,
            भिंगलै गोइठा अमारी।
भींग गेलै कम्बल रजैया,
      बरसलै पनिया बड़ी भारी।

कैसे के अलाव जरैइयै,
           थर-थर कांपे वदनमा।
धूप के दर्शन तनी न होबै
            भींगल हकै अंगनमां।

सरर-सरर सीतलहरी चलै,
           कांटे नै कटै है रतिया।
ठंढ़बा से मनमा घबरैलै,
         एको न भाब है बतिया।

दिन में टप-टप पानी बरसलै,
            रात में बरसलै ओस।
हे भगवान काहे सतैला,
            कि है हमनी के दोष।

       सुजाता प्रिय समृद्धि
         स्वरचित, मौलिक

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