Thursday, January 27, 2022

भारत की वीरांगनाएं (कहानी )





इतिहास की कक्षा प्रारंभ होने वाली है। छात्र-छात्राओं में नव-उमंग की लहरें हिलोरें ले रही है।आज शिक्षिका पूर्णिमा वर्मा कल का बचा हुआ अध्याय पूर्ण करने वाली हैं।भारत के वीर सपूतों की जीवनियां और उनके विषय में कुछ विशेष जानकारियां उन्होंने इतने रोचक तरीके से समझाया कि इतिहास विषय को बेकार और फालतू समझने वाले भी सुन- समझकर आत्मसात कर रहे थे। आज शेष अध्याय को सुनने की ललक सबके हृदय में थी।कक्षा में शिक्षिका के आगमन पर सभी विद्यार्थी शांत-चित से बैठ गये।शिक्षिका ने भी बड़े उत्साह से भारतीय स्वतंत्रता-संग्राम के वीरों के बलिदानों और क्रांतिकारियों के कारनामों की समस्त घटनाओं को बारी-बारी से बताना प्रारंभ किया।सभी विद्यार्थी मजे लेकर सुन रहे थे और विभूति के मन में एक अजीब सी उथल-पुथल चल रही थी। उसके मन के ये भाव शिक्षिका महोदया से छिपी नहीं रह सकी। उन्होंने उसे टोकते हुए कहा क्या बात है विभूति तुम्हें इन वीरों के बारे में पढ़कर अच्छा नहीं लग रहा ? तुम खोई-खोई सी क्यों हो ?
उसने कहा-बहुत अच्छा लग रहा महोदया ! किन्तु मेरे मन में कुछ अलग प्रश्न उठ रहे।
हां हां बताओ! कौन से प्रश्न उठ रहे कुछ बोलोगी तभी उसकी उत्तर पाओगी।
मैं सोच रही हूं अंग्रेजी शासन के विरुद्ध लड़ाई में इतने वीर और क्रांतिकारी पुरुषों ने अपने योगदान दिये,तो भारतीय महिलाओं की कोई भूमिका नहीं रही।
उसके इस अप्रत्याशित प्रश्न पर उसके सहपाठियों समेत स्वयं शिक्षिका भी स्तब्ध रह गईं।
फिर उन्होंने संयत स्वर में कहा-बहुत ही सुंदर और सार्थक प्रश्न उठे हैं तुम्हारे मन में विभूति! महिलाओं का योगदान हर क्षेत्र में रहा है और रहेगा।जितने भी वीरों ने अपनी जान गंवाई, उनमें सभी स्त्रियों का तो योगदान था ।यदि वे अपने ललनाओं को अपने जिगर के टुकड़ों को स्वतन्त्रता की उस आंधी में नहीं झोंकती, उन्हें लड़ने के लिए प्रेरित नहीं करतीं तो वे कभी अंग्रेजो की बर्बरता के आगे टिक नहीं पाते। बहनें अपने भाइयों के कलाइयों पर राखी बांधकर और नवविवाहिताएं पति के मस्तक पर विजय तिलक लगाकर युद्ध-भूमि भेज रही थीं। यह महिलाओं की भूमिका नहीं थी।कई जगह महिलाओं ने स्वयं भी अंग्रेजों से डटकर टक्कर लिया। 
महारानी लक्ष्मीबाई को तो सभी जानते हैं कि उन्होंने किस वीरता के साथ अंग्रेजों से टक्कर लेकर उन्हें धूल चटा दिया और बहादुरी से लड़ती हुई वीरगति को प्राप्त हुईं।
क्या एकमात्र वीरांगना लक्ष्मीबाई ही थी?
नहीं-नहीं अनगिनत थीं।
तो उनके बारे में हमें क्यों पढ़ने को नहीं मिलता ? उनकी वीरता के बारे में कोई अध्याय क्यों नहीं बना। क्यों उनके लिए इतिहास में पन्ने नहीं दिखते ? क्यों उनकी वीरता के बारे में हमें कुछ नहीं पढ़ातीं ? उसके इन प्रश्नों को सुन शिक्षिका हतप्रभ रह गयीं।और बहुत ही संयत और विनम्रता पूर्वक बोली -तुम्हारा यह प्रश्न जायज है विभूति ! मैं एक अलग और विशेष अध्याय तुम्हें अपनी तरफ से लिखकर पढ़ाऊंगी। जिसमें सिर्फ़ और सिर्फ़ भारत की वीरांगनाओं के बारे में लिखा रहेगा कि किस प्रकार उन्होंने अपने प्राणों की बाजी लगाकर ना केवल देश को स्वतंत्र ही कराया। बल्कि देश को एक सुदृढ़ और सुसंस्कृत भी बनाया। तुम्हारी तरह मेरे मन में भी यह जिज्ञासा उठी थी और मैंने भारत की स्वतंत्रता संग्राम की वीरांगनाओं की वीरता और बलिदान की गाथाओं को इतिहास के मुख्य अध्यायों से ढूंढ कर एकत्र करती गयी।अब मैं तुम्हें उनकी कुर्बानियों को बारी-बारी से तुम्हें बताती हूं -

अवंतिका वाई लोधी १८५७ की क्रांति की प्रथम शहीद वीरांगना थी। अंग्रेजों से लड़ते-लड़ते २० मार्च १८५८ को वीरगति को प्राप्त हुईं।
दूसरी वीरांगना मराठा शासित झांसी की महारानी लक्ष्मीबाई के बारे में हम सभी जानते हैं।मात्र तेईस वर्ष की उम्र में अंग्रेजों से जम कर टक्कर ली और अंग्रेजी सरकार को रौंदते-कुचलते हुए १८ जून १८५८ को वीरगति को प्राप्त हुईं।
झलकारी बाई रानी लक्ष्मीबाई की नियमित सेना दुर्गा दल की सेनापति थी। वीरांगना रानी लक्ष्मीबाई की हमशक्ल होने के कारण शत्रुदल को गुमराह कर उसे करारा हार दिलाने में इन्होंने अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। अंतिम समय में भी लक्ष्मीबाई के वेश में अंग्रेजी सेना से लड़ती रही और लक्ष्मी बाई को किले से भाग निकलने का अवसर प्रदान किया। लक्ष्मी बाई के एक विश्वासघाती सैनिक के कारण वीरगति पाईं।
लक्ष्मी बाई की भतीजी और बेलूर की जमींदार नारायण राव की बेटी अस्त्र शस्त्र संचालन और घुड़सवारी में काफी दक्ष थीं। इन्होंने भी अंग्रेजों के छक्के छुड़ा दिए।
बेगम हजरत महल असीम शौर्य एवं साहस के साथ अंग्रेजों से युद्ध की।
उदा देवी एक उच्च कोटि की निशानेबाज थी। उन्होंने पेड़ पर चढ़ कर अंग्रेजी सेना पर धड़ाधड़ गोलियां दाग दी। अंग्रेजो नें पेड़ को काट डाला तब उन्हें पता चला कि उन पर हमला करने वाला कोई पुरुष नहीं बल्कि नारी है।वह पासी समुदाय से थीं उनकी मूर्ति आज भी लखनऊ के सिकंदर बाग में स्थित है।
रानी गाइडिन्ल्यु ने नागालैंड में अंग्रेजों के खिलाफ युद्ध में नेतृत्व किया।
इसके अतिरिक्त रानी तपस्विनी चौहान रानी ,नाना साहेब पेशवा की पुत्री मैना,मु्न्दरा ,काना, रानी हिण्डोरिया, रानी तेजवाई , रानी चेनम्मा, नर्तकी अज़ीज़ वेगम,कस्तूरबा गांधी,विजय लक्ष्मी पंडित, अरुणा आसफ अली, सरोजिनी नायडू, सिस्टर निवेदिता, मीरा बेन, कमला नेहरू,मैडम भीखाजी कामा, सुचेता कृपलानी आदि बहुत सारी वीरांगनाओं की भी भारत को स्वतंत्र कराने में महत्वपूर्ण भूमिका रही। जिनके बारे मैं अगली कक्षाओं में विस्तार से बताऊंगी।अभी कक्षा का समय समाप्त हो गया है। जय हिन्द,जय भारत।
जय भारत की वीरांगनाएं।
विभूति ने खुशी से जयघोष किया तो छात्राओं सहित सभी छात्रों ने भी आवाज बुलंद किया।
         सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

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