दशरथ जी के लालना,राम बड़े थे वीर।
अरिदल की सेना संग, लड़ने में रणधीर।
मंझली मां के कोप से, मिला उन्हें वनवास।
पिता की आज्ञा पा चले,मन में ले हुलास।
मातु-पिता और गुरु के,चरणों में नवाकर शीश।
सभी जन को प्रणाम कर,चले पाकर आशीष।
लघु-भ्राता लक्ष्मण बोले,जोड़ कर दोनों हाथ।
भैया अकेले ना जाइए, मैं भी चलूंगा साथ।
त्याग राजसी वस्त्र को,पहन वलकल अंग।
भार्या सीता भी चली, ख़ुश हो उनके संग।
वन वन भटके साथ वे, खाते मूल और कंद।
छोटी-सी कुटिया बना,रहते लिए आनन्द।
सुजाता प्रिय'समृद्धि'
स्वरचित, मौलिक
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