Friday, October 1, 2021

और कहानी छप गयी

किसी नगर में एक निर्धन और विद्वान ब्राह्मण रहते थे।उनके द्वार पर उनके शिष्यों भीड़ लगी रहती।सभी को वे उत्तम शिक्षा देते थे।गुरु दक्षिणा के रूप में वे स्वेच्छा से जो कुछ दे देते उसे संतुष्ट भाव से स्वीकार करते। उन्हें कहानियां लिखने का बड़ा शौक था।जब भी समय मिलता अच्छी और शिक्षाप्रद कहानियां लिखकर लोगों को सुनाते।सभी लोग उनकी कहानियों की खूब प्रशंसा करते। उन्हें लगता काश उनकी कहानियां पत्र-पत्रिकाओं में छपती। लेकिन, निर्धनता के कारण वे अपनी कहानियों को छपबा नहीं पाते।
उनकी पत्नी मुर्ख और झगड़ालू स्वभाव की थी।आये दिन वह उनसे झगड़े करती।उनके द्वारा कहानी लिखें जाने को मुर्खतापूर्ण व्यवहार तथा कागज रोशनाई और समय की बर्वादी कहती।अवसर पाते ही उनके शिष्यों को डांट-फटकार कर भगा देती। उन्हें बस टोले-पड़ोसियों की निंदा सुनने एवं चुगली करने में ही मज़ा आता। पंडित जी उन्हें समझाते की निंदा एवं चुगली करना बुरी बात है। संसार में भांति-भांति के लोग हैं। दुर्गुणों और दुराचारियों की ओर ध्यान न देकर भले मानस और गुणवानों की कद्र तथा संगति करनी चाहिए। परंतु पंडिताइन पर उनके उपदेशों का कोई असर नहीं होता।
पंडित जी ने एक पुस्तक में पढ़ी थी कि महापुरुषों की सफलता में किसी-न-किसी नारी का साथ रहा है। वे सोचते मां-बहन तो है नहीं। पत्नी ऐसी मुर्ख है जिसकी दृष्टि में शिक्षा से बुरा कोई कार्य हो ही नहीं सकता। वे सोचते काश वे मुर्ख होते और उनकी पत्नी पत्नी कालिदास और तुलसीदास की पत्नी जैसी।
एक दिन पंडित जी किसी काम से बाहर आते हुए थे। पंडित जी की पत्नी झाड़ू लगा रही थी। अचानक उनकी दृष्टि पंडित जी के बिछावन पर पड़ी, जहां पंडित जी द्वारा लिखी गई एक नयी कहानी रखी थी। उसने सोचा? क्यों ना इसे बाहर फेंक दूं। यदि मैं उनके लिखे पन्ने को फेंकती जाऊं तो पंडित जी ऊब कर लिखना ही छोड़ दें।ऐसा सोचकर वह कहानी के पन्नों को उठाकर कूड़े के ढेर पर फेंक आयी।
संयोग से उस समय वहां से जा रहे एक पत्रकार की नजर उस पन्ने पर पड़ी। उन्होंने उसे कुछ जरूरी कागजात समझकर उठाया और कहानी पढ़ी। उन्हें वह कहानी बहुत ही रोचक और शिक्षाप्रद लगी। अंत में पंडित जी का नाम पता लिखा था। पत्रकार ने उस कहानी को उनके नाम-पते के साथ छपबा दिया।
 जब पंडित जी घर लौटकर आते तो अपने द्वार पर भीड़ देखकर अचंभित हो गये।उनके एक विद्यार्थी ने उन्हें अखबार दिखाते हुए कहा- अखबार में आपकी बहुत अच्छी कहानी छपी है। पंडित जी किंकर्तव्यविमूढ़ सा उन्हें देखते हुए सोच रहे थे-मुझे तो छपबाने सामर्थ ही नहीं फिर मेरे कहानी कैसे छप गयी ? अखबार लेकर पढ़ी। सचमुच यह तो उनके द्वारा लिखी गरी कहानी है। कहानीकार के स्थान पर उनका ही नाम है।साथ में उन्हें इस कहानी लिखने के लिए पुरस्कृत करने के लिए आमंत्रित किया गया है। आखिर यह चमत्कार हुआ कैसे?
वे घर आकर अपनी लिखी हुई कहानी ढूंढने लगे।
पत्नी ने उन्हें ऐसा करते देख तो पूछा क्या ढूंढ रहे हो?
उन्होंने कहा-यहां मैंने एक कहानी लिखकर रखी थी।
पत्नी ने कूढ़ते हुए कहा-उसे तो मैंने कूड़े पर फेंक दिया।
अब पंडित जी को सारी बात समझ में आ गयी।वे अपनी मुर्ख पत्नी को देखकर मुस्कुरा उठे।आज उन्हें अपनी मुर्ख पत्नी के कारण यह सफलता प्राप्त हुई थी।
                             सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

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