Monday, October 4, 2021

कल हाथ पकड़ना मेरा



कल हाथ पकड़ना मेरा (लघुकथा)

सब्जियों की थैली ले कांपते कदमों से शम्भु प्रसाद जी बार-बार सड़क पार करने का प्रयास कर रहे थे। लेकिन तेज रफ्तार से आती गाड़ियों को देख उनकी हिम्मत जवाब दे जाती।ना चाहते हुए उनकी नजरें मनीष को ढूंढ रही थी।वे उसका एहसान नहीं लेना चाहते थे।इतने में मनीष लपकता हुआ उनके निकट आया और उनका हाथ पकड़ कर सड़क पार कराने लगा। सड़क पार कर दोनों साथ-साथ चलने लगे। शम्भु प्रसाद ने कृतज्ञता प्रकट करते हुए कहा- बेटा तुम्हारे आफिस से आने और मेरे सब्जियां लाने का समय एक ही है। अक्सर हमारी-तम्हारी भेंट हो जाती है।तुम स्वयं थके-हारे आते हो फिर मुझे...........
शम्भु प्रसाद की बातें काटते हुए मनीष ने कहा आप भी तो आफिस से थके आते थे चाचा जी ! जब हम छोटे थे। विद्यालय से आते समय आप मेरे सभी साथियों को हाथ पकड़ कर सड़क पार कराते थे। मां ने कहा था किसी के साथ नहीं जाना।पता नहीं कैसे लोग हों क्या मकसद हो उनका। इसलिए हम आपके साथ नहीं जाना चाहते थे। आखिर मैंने आपसे एक दिन पूछ ही लिया कि क्यों आप हमें सड़क पार कराते हैं? आपने कहा था-बच्चे नासमझ और बूढ़े कमजोर होते हैं । इसलिए उन्हें सड़क पार करने में मदद करनी चाहिए।जब मैं बूढ़ा हो जाउंगा तब तुम भी मेरा हाथ पकड़ कर सड़क पार करना। आपकी यह शिक्षा मुझे बहुत अच्छी लगी।सचमुच आज वही स्थिति हो गयी। मेरे कार्यालय से आने का और आपके सब्जी लाने का समय एक ही है।जब मैं आपको सड़क पार करने में असमर्थ पाता हूं आपको सड़क पार करा देता हूं। इतना ही नहीं कहीं भी मैं किसी बच्चे और बुजुर्ग को सड़क पार करने में असमर्थ पाता हूं उन्हें जरूर मदद करता हूं।
शम्भु चाचा ने सोचा -हमारे कार्यों एवं संदेश से किसी को तो सीख मिली। हो सकता है अन्य बच्चे भी यह कार्य करते होंगे। मनीष संयोग से यहीं है इसलिए मुझे मदद करता है।उनका मन प्रसन्नता से भर गया।
             सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

4 comments:

  1. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन  में" आज मंगलवार 05 अक्टूबर 2021 शाम 3.00 बजे साझा की गई है....  "सांध्य दैनिक मुखरित मौन  में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  2. बहुत-बहुत आभार दीदी जी !सादर नमन

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  3. मन को गहरे छू गई लघुकथा...। खूब बधाई

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  4. बहुत -बहुत धन्यवाद

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