अकेले खड़े हो मुझे तुम बुला लो।
मायुस क्यों हो ,जरा मुस्कुरा लो।
रात है काली औरअँधेरा घना है,
तम दूर होगा तू दीपक जला लो।
भरोसा न तोड़ो, मंजिल मिलेगी,
जो मन में बुने हो सपने सजा लो।
देखो तो कितनी है रंगीन दुनियाँ,
इन रंगों को अा मन में बसा लो।
रूठा न करना कभी भी किसी से,
रूठे हुए को जरा तुम मना लो।
पराये को अपना बनाना कला है,
अपनों को अपने दिल में बसालो।
बुराई किसी की तू, मन में लाओ,
अच्छाईयों कोभी अपना बना लो।
प्यार सिखाता जो,वह गीत गाओ,
झंकार करता , गजल गुनगुनाओ।
सुजाता प्रिय
स्वरचित सर्वाधिकार सुरक्षित
नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा सोमवार 21 सितंबर 2020) को 'दीन-ईमान के चोंचले मत करो' (चर्चा अंक-3831) पर भी होगी।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्त्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाए।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
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-रवीन्द्र सिंह यादव
मेरी रचना को चर्चा अंक में साझा करने के लिए हार्दिक धन्यबाद एवं आभार भाई!
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ReplyDeleteअच्छी ग़ज़ल
सुजाता प्रिय जी
साधुवाद 🙏
यदि समय निकाल कर मेरी इस ब्लॉग पोस्ट पर पधारें तो कृपा होगी
https://ghazalyatra.blogspot.com/2020/09/blog-post_20.html?m=1
सादर धन्यबाद सखी।आपके ब्लॉग पोस्ट जरूर देखुँगी।
Deleteबहुत सुंदर रचना
ReplyDeleteबहुत-बहुत धन्यबाद सखी।
Deleteपराये को अपना बनाना कला है,
ReplyDeleteअपनों को अपने दिल में बसालो।
बहुत ही सुन्दर
वाह!!!
हार्दिक धन्यबाद सखी
Deleteपराये को अपना बनाना कला है,
ReplyDeleteअपनों को अपने दिल में बसालो।
बुराई किसी की तू, मन में लाओ,
अच्छाईयों कोभी अपना बना लो।
बेहतरीन ग़ज़ल सुजाता प्रिय जी!!!
हार्दिक बधाई!!!
बहुत-बहुत धन्यबाद एवं हार्दिक आभार सखी।
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