हर जगह मुझको ही आजमाया गया।
दर्द दे - देकर है सदा ही हँसाया गया।
सोंचती रही कि है ईश्वर की यही मर्जी,
जितना सहती गई उतना सताया गया।
वश तो गैरों पर कभी भी चलता है नहीं,
सदा अपनों के द्वारा मुझे रुलाया गया।
दिखाऊँ किसे दिल पर पड़े फफोलों को,
धीमी आँच पर जिसको है जलाया गया।
अश्क आँखों से छलक जाए ना कहीं,
मीठे शब्दों से दिल को बहलाया गया।
उफ न कह दे होंठ कहीं गैरों के निकट,
मरहम मधुर वाणियों का लगाया गया।
सुजाता प्रिय 'समृद्धि'
मौलिक ( स्वरचित )
बहुत-बहुत धन्यबाद सखी।मेरी रचना को भावों के चंदन चर्चा अंक में करने के लिए।सादर
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeleteबहुत-बहुत धन्यबाद भाई।
Deleteमार्मिक सत्य
ReplyDeleteसादर धन्यबाद सखी।
Deleteबहुत सुन्दर सृजन सुजाता जी .
ReplyDeleteसादर धन्यबाद एवं आभार सखी।
Deleteसुन्दर
ReplyDeleteसादर आभार सर! नमन।
Deleteउम्दा, मर्मस्पर्शी सखी
ReplyDeleteधीमी आँच पर जिसको है जलाया गया।
उफ्फ!!
बहुत-बहुत धन्यबाद सखी
Deleteसुंदर
ReplyDeleteबहुत-बहुत धन्यबाद सखी
ReplyDeleteबहुत सटीक एवं मार्मिक...
ReplyDeleteउत्कृष्ट सृजन।
हार्दिक आभार सखी
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