Wednesday, September 9, 2020

मानवता का पाठ

नेता जी का नौकर चन्दूं,
चला घुमाने टॉमी को।
एक हाथ से पकड़ रखा था,
उजली बिल्ली रौमी को।

सड़क किनारे जाते देखा,
कृशकाय एक बालक को।
शायद राह भटक गया था,
ढूंढ रहा था पालक को।

थी दुर्बल उसकी जर्जर काया,
हड्डी-पंजर सब दिखता था।
कुपोषण की शिकार बेचारा,
चिड़-चिड़ करता चीखता था।

मन में अपने सोंचा चन्दू,
मानवता का अब मोल नहीं
कुपोषित काया की खातिर,
किसी के मुख में बोल नहीं।

कुत्ते-बिल्ली सभी पालते,
प्यार लुटाते उसपर अपना।
दूध-मांस हैं उनको देते,
सुखी रोटी गरीब का सपना।

कुत्ते को स्वेटर हैं पहनाते,
बिल्ली को दुशाले का साया।
मानव का पूत नंगा घूमता,
इस पर न किसी को माया।

कुत्ते-बिल्ली को गोद बैठाकर,
गाड़ियों में घुमाते हैं।
गरीब के इस बच्चे को देख,
घृणा से मुँह बनाते हैं।

पशुओं को छोड़ कर चन्दू ने,
झट बच्चे को उठा लिया।
मानवों को मानवों के संग,
मानवता का पाठ पढ़ा दिया।

     सुजाता प्रिय 'समृद्धि'
स्वरचित सर्वाधिकार सुरक्षित

8 comments:

  1. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज गुरुवार 10 सितंबर 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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    1. मेरी रचना को सांध्य मुखरित मौन में साझा करने के लिए हार्दिक धन्यबाद एवं प्रणाम दीदीजी।

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  2. Replies
    1. बहुत-बहुत धन्यबाद एवं आभार सर।

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  3. सादर धन्यबाद भाई

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  4. विडंबना ही कहेंगें, और क्या !

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