Thursday, September 3, 2020

आत्महत्या सुलझन नहीं उलझन।


आज कल आत्महत्या का प्रचलन बढ़ता जा रही है आए दिन समाचार पत्रों में आत्महत्या की खबरे छपी दिखती है।साथ ने यह भी लिखा रहता है कि मानसिक तनाव , जिम्मेदारियों के बोझ अथवा आर्थिक तंगी से घबरा कर आत्महत्या कर ली। विद्यार्थी गण असफलता के कारण आत्महत्या कर रहे हैं। स्त्रियाँ कलह और मानसिक अवसादों का शिकार हो आत्महत्या कर रही हैं।लेकिन क्या कभी किसी ने यह सोंचा कि आत्महत्या कर लेने से उनकी यह समस्या सुलझ जाएगी ? नहीं न।
किसी भी परिस्थिति में की गई आत्महत्या सुलझन नहीं हो सकती ,वल्कि यह हर बातों में उलझन ही उत्पन्न करती है।जिस समस्या का समाधान या निदान व्यक्ति जीते जी नहीं कर सकता, उसे मरने के पश्चात कैसे कर सकता है।मरकर तो कितनी ही अनसुलझी गुत्थियों को उलझाकर और अपने आप में समेटकर ही चले जाते हैं।स्वयं भी किव्दंतियों एवं बदनामियों के शिकार होते हैं , और दोस्त- साथियों  और परिजनोंं को भी उलझन में डाल देते हैं।स्वयं अवसाद एवं मानसिक तनाव से निजात पा लेते हैं किंतु दूसरों को उलझाकर चले जाते हैं।
जिंदा रहकर सारे रहस्यों का पर्दाफास किया जा सकता है, मन की सारी उलझनों को सुलझाया जा सकता है न कि आत्महत्या कर सारी रहस्यों को दफन कर।
इस प्रकार आत्महत्या सिर्फ और सिर्फ उलझन है सुलझन नहीं।
           सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

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