Wednesday, September 2, 2020

नारी के हैं रूप अनेक

मत कहो कि है अबला नारी।
सदा- ही रही है सबला नारी।।

पाई है  वह  बस, दो- ही हाथ।
कितने कामों को करती साथ।।

सबके लिए है भोजन पकाती।
दूर तालाब से  है पानी  लाती।।

नौ महीने तक पेट में रखकर।
बच्चे जन्म देती दुःख सहकर।।

एक बच्चा को पीठ पर बाँध ।
और दूजे को कराती है स्नान।।

समय पर है विद्यालय पहुँचाती।
और घर आने पर स्वयं पढ़ाती।।

घर के सारे बर्तन- कपड़े धोती।
तड़के जगती है व देर से सोती।।

सिलाई- बुनाई और करे कढ़ाई।
कूड़े- कचरे की  भी करे सफाई।।

कुदाल  चला वह खेती करती।
पाल - पोष सबका दुख हरती।।

बीमारों की  देखभाल करती।
बड़े-बूढों की सेवा भी करती।।

बाजार का काम भी है  करती।
कभी नहीं मुख से उफ कहती।।

पैसे कमाने भी बाहर है जाती।
डाक-दफ्तर को भी निपटाती।।

जलावन की लकड़ियाँ बिनती।
किन-किन कामों की है गिनती।।

दुर्गा काली की लेकर अवतार।
देश-रक्षा करती उठा हथियार।।

महामाया-मोहा-नारायणी नारी।
शक्तिशालिनी- कात्यायनी नारी।।

      सुजाता प्रिय 'समृद्धि'
स्वरचित सर्वाधिकार सुरक्षित

8 comments:

  1. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज गुरुवार 03 सितंबर 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  2. नमस्कार दी! मेरी रचना को सांध्य मुखरित मौन में साझा करने के लिए हार्दिक धन्यबाद एवं आभार।

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  3. सुन्दर प्रस्तुति

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    1. बहुत-बहुत धन्यबाद भाई

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  4. सत्य कहा बहुत सुंदर

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  5. सुंदर सार्थक सृजन सखी।

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  6. सादर धन्यबाद सखी

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