Friday, July 3, 2020

मैं बस स्वराज्य चाहता

न राज न ताज चाहता।
भलाई का काज चाहता।

जन्मसिद्ध अधिकार है,
मैं बस स्वराज्य चाहता।

उन्मुक्त उड़ानें भर सकें,
मन यही आज चाहता।

विदेशी तज स्वदेशी ला,
देश मंत्र आज चाहता।

नफरत का वास न रहे,
देश वह समाज चाहता।

सबको जो सुलभ लगे,
वह रीत रिवाज चाहता।

श्रवण को जो प्रिय लगे,
वो मधुर आवाज चाहता।

लोकमान्य- सा जो बने,
देश पूत आज चाहता।

  सुजाता प्रिय 'समृद्धि'
स्वरचित सर्वाधिकार सुरक्षित

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