Saturday, July 11, 2020

रास्ते के पेड़


वर्षों बाद महेश बाबु गाँव आ रहे हैं। उन्हें फोन पर ही खबर मिली थी कि ग्रामीण सड़क योजना के तहत उनके गाँव तक पक्की सड़क बन गई है।गाँव जाने वाली बस में सफर कर उन्हें जो सुकून मिल रहा था वह सुकून कभी मुम्बई में  विदेशी कार में घूमने में भी नहीं मिला।पहले तो  गाँव से शहर तक बैलगाड़ी अथवा घोड़ागाड़ी पर सवार हो कच्चे रास्ते से आना जाना होता था।
रास्ते में आने वाले गाँव में बस को रोककर यात्रियों  को उतारते हुए बस आगे बढ़ी जा रही थी।उन्हें अंदाज हो रहा था कि अब उनका गाँव निकट है और वे जल्द ही अपने गाँव उतरने वाले हैं।लेकिन यह क्या बिना किसी की आज्ञा के बस रुक गई।उन्होंने देखा वहाँ कोई गाँव नहीं, कोई पड़ाव नहीं।
तभी कंडक्डर  ने कहा सभी यात्री गण उतर जाएँ।बस आगे नहीं जाएगी।क्योकि बीच सड़क पर एक काटा गया पेड़ गिर पड़ा है।दूर गाँव के यात्री गण बस वाले को कोसने हुए भाड़े वापसी की बात करने लगे।
महेश बाबु सोंचने लगे जितनी देर बहस करूँगा उतनी देर में तो पैदल घर पहुँच जाउँगा।रास्ते में जान- पहचान वाले एवं मित्रों से बात- मुलाकात भी होगी।बस से उतरकर वे अपना विदेशी सुटकेश लिए गाँव की ओर बढ़ चले।सुंदर साफ-सुथरा पथ देख उनका मन प्रफुल्लित हुआ जा रहा था।लेकिन गाँव में भी फागुन की कड़कती धूप से वे हतप्रभ थे।गर्मी से परेशान हो उन्होंने अपना कोट खोलकर कंधे पर रख लिया।
पसीने पोछते हुए सोंचे किसी पेड़ कीे छाया में ठहरकर थोड़ी देर सुस्ता लूँ ।फिर आगे बढ़ूँगा।किन्तु यह देख उनका मन विचलित हो उठा।रास्ते के किनारे के सभी पेड़ गायब थे।बहुत दूर तक नजरेंदौड़ाने पर एक पेड़ं दिखा।जिसे वह पहचान रहे थे ।इसी आम के पेड़ में बचपन में झूला लगाकर दोस्तों के संग झूलते थे।आम के टिकोले का स्वाद उन्हें आज भी याद है । सड़क बनने की खुशी से ज्यादा दुःख उन्हें पेड़ों के काटे जाने  का हुआ। क्यों उन छायादार वृक्षों को काटा गया ।क्या था उनका कसूर।इसलिए तो फागुन माह में भी इतनी गर्मी लग रही। पढ़-लिखकर भी लोग पेड़-पौधों के लिए इतने बेरहम क्यों हो गए।आखिर क्यों उन्हें नष्ट कर प्राकृतिक आपदाओं को आमंत्रित कर रहे हैं?
   सुजाता प्रिय 'समृद्धि'राँची
  स्वरचित सर्वाधिकार सुरक्षित

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