मेरी नैया डगमग डोले रे,
प्रभु आज पकड़ पतवार इसकी।
लहरों में खा हिचकोले रे,
प्रभु आज पकड़ पतवार इसकी।
बड़ी तेज बहे जलधार रे।
मेरी नैया पड़ी मजधार रे।
कभी तेज चले कभी हौले रे,
प्रभु आज पकड़ पतवार इसकी।
प्रभु आज तू दे दो सहारा।
मुझे दिखता नहीं किनारा।
मन भेद ये अपना खोले रे,
प्रभु आज पकड़ पतवार इसकी।
हम जीवन की नाव चलाएँ।
तुफान न कोई भी आए ।
मेरा मन तुझसे यह बोले रे,
प्रभु आज पकड़ पतवार इसकी।
सुजाता प्रिय
जी दीदीजी सादर नमन।मेरी रचना को पाँच लिकों के आनंद पर साझा करने के लिए हार्दिक धन्यबाद।
ReplyDeleteवाह!!!!
ReplyDeleteप्रभु को जीवन की पतवार सौंप दो फिर भयमुक्त जियो....
बहुत सुन्दर सृजन।
बहुत-बहुत धन्यबाद सखी।
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