विरह से व्याकुल हृदय को,
प्यार का पैगाम दे दो।
वेदना की श्रृंखला को,
आज कुछ विराम दे दो।
वेदना से क्या कहूँ,
यह दिल बड़ा बेचैन है।
दिन नहीं कटता यहाँ,
कटता नहीं अब रैन है।
अहसास हो कुछ आस का,
तुम ऐसी कोई शाम दे दो।
मन में विरह की वेदना,
पल-पल मुझे झकझोरती।
राग और रंगिनियाँ भी,
आज है मुख मोड़ती।
हर सके संताप उर का,
तुम ऐसा कोई जाम दे दो ।
विरह में तुम भी जलोगे,
तुम इसे मत भूलना।
तेरा हृदय पाषाण है,
गुमान में मत फूलना ।
प्यार है या हार है यह,
कुछ तो इसका नाम दे दो।
सुजाता प्रिय
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" में सोमवार 24 फरवरी 2020 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteबहुत-बहुत धन्यबाद दीदीजी! मेरी रचना को साझा करने के लिए।सादर नमन।
Deleteबहुत-बहुत धन्यबाद दीदीजी ! मेरी रचना को साझा करने के लिए हार्दिक आभार एवं सादर नमन।
Deleteवाह!सखी सुजाता जी ,बहुत खूबसूरत सृजन ।
ReplyDeleteबहुत-बहुत धन्यबाद सखी।
ReplyDeleteवाह, सुजाता जी, वेदना से व्याकुल मन का किसी विशेष से संवाद में खूब निखरा है । किसी से मिली पीड़ा में इंसान यही कुछ सोचता है। ये पंक्तियाँ विशेष उल्लेखनीय हैं ----
ReplyDeleteमन में विरह की वेदना,
पल-पल मुझे झकझोरती।
राग और रंगिनियाँ भी,
आज है मुख मोड़ती।
हर सके संताप उर का,
तुम ऐसा कोई जाम दे दो
भावोंसे भरे लेखन के लिए सस्नेह शुभकामनायें सखी।
प्रिय सखी रेणु जी ! बहुत-बहुत धन्यबाद कि आपने मेरी लिखी रचना के भावों को बेहतरीन तरीके से समझा।आपका आभार एवं सादर नमन।
ReplyDeleteमन में विरह की वेदना,
ReplyDeleteपल-पल मुझे झकझोरती।
राग और रंगिनियाँ भी,
आज है मुख मोड़ती।
हर सके संताप उर का,
तुम ऐसा कोई जाम दे दो ।
शानदार हृदय स्पर्शी सृजन सखी ।
बहुत-बहुत धन्यबाद सखी।
ReplyDeleteबेहतरीन रचना सखी
ReplyDeleteबहुत-बहुत धन्यबाद सखी।
ReplyDeleteविरह में तुम भी जलोगे,
ReplyDeleteतुम इसे मत भूलना।
तेरा हृदय पाषाण है,
गुमान में मत फूलना ।
प्यार है या हार है यह,
कुछ तो इसका नाम दे दो।
विरह से विकल मन की ह्रदयस्पर्शी गुहार ,लाज़बाब सृजन सुजाता जी,सादर नमन
बहुत-बहुत धन्यबाद सखी! नमन आपको भी।
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