आँख खुली और जागी मैं,
पदचाप सुनाई दी तेरी।
चिड़ियों के मीठे कलरव में,
सुप्रभात सुनाई दी तेरी।
मूंदकर आँखें उनींदी,
मैं अलसायी- सी सोयी थी।
भावी जीवन के खुशियों के,
मीठे स्वप्नों में खोयी थी।
तुम गाये उठ जा भोर भई,
आलाप सुनाई दी तेरी।
हौले से दस्तक दे नैनों के,
दरवाजे तुमने खुलबाये।
अपने आगमन की सूचना,
पदचापों से दे मुस्काये।
तुम कहे अब है बीत गई,
यह रात सुनाई दी तेरी।
मुझे पता है कि तुम रवि ही हो,
पदचापों से मैं जान गई।
तेरी आभा फैली दिशा-दिशा,
बिन देखे ही पहचान गई।
थे खुसुर-फुसुर कुछ बोल रहे,
वह बात सुनाई दी तेरी।
कपोलों पर तेरी लाली छाई,
ओढ़े चादर तुमने वासंती।
रंग पीला, कुछ नारंग लिए,
खिल गया फूल ज्यों वैजयंती।
शांत-सुबह की संगीतों में,
यह थाप सुनाई दी तेरी।
सुजाता प्रिय
मुझे पता है कि तुम रवि ही हो,
ReplyDeleteपदचापों से मैं जान गई।
तेरी आभा फैली दिशा-दिशा,
बिन देखे ही पहचान गई।
थे खुसुर-फुसुर कुछ बोल रहे,
वह बात सुनाई दी तेरी।
वाह !!! बहुत खूब सुजाता जी ,लाज़बाब सृजन ,सादर नमन
बहुत-बहुत धन्यबाद सखी।सादर नमन।
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" में सोमवार 10 फरवरी 2020 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteजी बहुत-बहुत धन्यबाद दीदीजी !सादर आभार एवं नमस्कार
ReplyDeleteबहुत बहुत सुंदर सृजन सखी।
ReplyDeleteअभिनव रचना।
कपोलों पर तेरी लाली छाई,
ओढ़े चादर तुमने वासंती।
रंग पीला, कुछ नारंग लिए,
खिल गया फूल ज्यों वैजयंती।
शांत-सुबह की संगीतों में,
यह थाप सुनाई दी तेरी।
बहुत-बहुत धन्यबाद सखी।सादर नमन।
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर और अलग हटकर है ये पदचाप !
ReplyDeleteमौलिक एवं मनमोहक कविता।
बहुत-बहुत धन्यबाद सखी! आपकी टिप्पणियाँ उर्जा का संचार करती है।सादर
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