निज प्रगति मेंआप ही,होते बाधक लोग।
आलस्य इसका कारण है,कहते हैं संयोग।।
असफल होकर कोसते, व्यर्थ भाग्य को आप।
काम सदा जो टालते,रखते उर संताप।।
कभी नहीं जो मानते, गुरुजनों की बात।
पछताते जीवन भर, कुढ़ते हैं दिन रात।।
शेखी जो बघारते, मात-पिता के संग।
काहिल रहते हैं सदा,सीख न पाते ढंग।।
सक्रियता से जीवन में, करते हैं जो काम।
कर्मठता से काम कर,पाते सभी मुकाम।।
कल पर काम न टालिए, तुरंत करें सब काम।
महामंत्र है जीव की, मिलता सुख आराम।।
प्रतिस्पर्धा सबसे करें, लेकर मन में होड़।
मिले सफलता आपको , जीवन हो बेजोड़।।
सुजाता प्रिय 'समृद्धि'