अहंकार का फल
एक पेड़ पर घोंसला बनाकर एक मैना रहता था और पेड़ के नीचे बिल में एक चूहा। दोनों पड़ोसियों में बातचीत भी होती थी और समय पढ़ने पर अक्सर दोनों एक- दूसरे की मदद भी करते ।एक दिन बड़ी जोरों की बरसात हुई। घोंसला समेत मैना के पंख भीग गए और वह भोजन लाने नहीं जा सका।तब चूहे ने खेतों से लाकर उसे दाना दिया।लेकिन उस दिन से चूहा को यह घमंड हो गया कि वह मैना से ज्यादा शक्तिशाली है। बातों-बातों में यह बात एक दिन उसने मैना से भी कह दी।मैना ने कहा - ऐसी कोई बात नहीं !थोड़ी देर हवा में पंख सुखाकर मैं भी दाना चुगने जा सकता था। परंतु, जब तुमने दाना दिया तो ठंडक से परेशान मैं आराम करता रहा।
लेकिन चूहा यह मानने के लिए बिल्कुल तैयार नहीं था ।उसने कहा तुम अपने पंखों से सिर्फ आसमान में उड़ सकते हो। लेकिन मैं जहांँ चाहे जा सकता हूंँ। मैना ने कहा- पंखों से उड़कर ही सही मैं अपनी बुद्धि का प्रयोग कर हर जगह जा सकता हूंँ।हर कठिनाई को झेल सकता हूंँ।
इस बात पर दोनों में काफी बहस छिड़ गई ।अंत में दोनों ने यह निर्णय लिया कि दोनों दिन भर साथ-साथ चलेंगे।जो किसी जगह जाने में असमर्थ होगा वह कमजोर और जो सभी जगह जाएगा वह बलवान होगा।
दूसरे दिन सुबह से दोनों ने चलना प्रारंभ किया।थोड़ी दूर चलने पर रास्ते में एक जगह ढेर सारा कीचड़ मिला।मैना उड़ कर सूखी जमीन पर जा बैठा। चूहा कीचड़ में फँस गया।निकलने की जितनी कोशिश करता, उतना ही फँसता जाता।यह देख मैंने कहा- चूहा भाई ! चूहा भाई ! मैं तो उड़ कर पहुंँच भी गया।पर तू तो कीचड़ में ही फँसा हुआ है ।
चूहा हार नहीं मानना चाहता था। उसने कहा -अरे मैना ! कीचड़ में तो फंँसेगा तू। मैं तो देख ,यहाँ हलवा बना रहा हूंँ।मैना चुप हो गया ।
किसी तरह चूहा कीचड़ से निकला और दोनों ने फिर चलना शुरू किया।आगे चलकर उन्हें बहुत सारे कांँटे मिले मैना उड़ कर कांँटों से परे बैठ गया और चूहा चलते-चलते काँटों में उलझ गया। मैना ने फिर उसे चिढ़ाते हुए कहा- चूहा भाई! चूहा भाई!मैं तो उड़ कर पहुंच भी गया और तू काँटों में उलझा हुआ है ।
चूहा बोला मैं कहांँ उलझ रहा कांँटों में ? काँटों में तो उलझेगा तू। मैं तो गोदना गोदवा रहा हूंँ।
मैना मुस्कुराता हुआ उसे देखता रहा ।बड़ी मुश्किल से चूहा काँटों से निकला और मैना के साथ चलने लगा।
आगे खेत में उसे थोड़ा पानी मिला मैना उड़कर पानी के उस पार जा बैठा।लेकिन,चूहा पानी में घुसा और डूबने उतरने लगा।
मैना बोला -चूहा भाई!चूहा भाई!मैं तो पानी पार भी कर गया। लेकिन तू तो वहीं डूब रहे हो।
चूहा बोला -भला मैं कहाँ डूब रहा हूंँ ? मैं तो गंगा-स्नान कर रहा हूंँ।
फिर वह पानी से निकलकर आगे बढ़ा।अब आगे उनको बिकराल अग्नि से भेंट हुई।मैना आकाश- मार्ग से उड़कर अग्नि से दूर जा बैठा। लेकिन चूहा अपनी बहादुरी दिखाने के लिए अग्नि में प्रवेश कर गया।उसका पूरा शरीर झुलसने लगा।मैना बोला - चूहा भाई! चूहा भाई!मैं तो पहुंँच भी गया। लेकिन तू तो आग में ही झुलस रहे हो।
परंतु वह हट्ठी और घमंडी चूहा हार कब मानने वाला था।
उसने जलते-जलते हुए भी कहा- मैं कहांँ जल रहा हूंँ ? जले मेरा दुश्मन । मैं तो अग्नि-परीक्षा दे रहा हूंँ।
इस प्रकार अग्नि-परीक्षा की झूठी दलील देते-देते उस हठधर्मी और अभिमानी चूहे के प्राण पखेरू उड़ गए।
शिक्षा-कभी स्वयं को सबसे बड़ा या बलवान समझकर घमंड नहीं करना चाहिए।और ना ही स्वयं को सर्वश्रेष्ठ साबित करने के जोश में अपने होश होने चाहिए ।हर प्राणी में प्राकृतिक प्रदत्त अलग-अलग गुण होते हैं।ईर्ष्या और अहंकार के कारण प्राकृतिक गुणों से टक्कर लेने वालों का ऐसी ही दशा होती है ।इसलिए सदा ही विवेक से काम लेना चाहिए
सुजाता प्रिय 'समृद्धि'
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