नज़रों का धोखा
एक बार बचपन में हम मौसेरे भाई की शादी में गए।बस से उतरने के बाद मौसी के गाँव तक जाने के लिए टमटम से जाना था।हम सभी भाई -बहन उत्साहित थे । पहली बार टमटम की सवारी करनेवाले थे। पिताजी टमटम वाले से बात कर रहे थे कि एक सज्जन ने कहा इससे मैंने पहले बात कर ली है।आप दूसरा टमटम देख लें।उस व्यक्ति और मेरे पिताजी थोड़ी कहा-सुनी भी हो गई। फिर बात-बात में टमटम चालक ने कहा- दोनों को एक ही गाँव जाना है तो दोनों साथ चलिए। दोनों को बात जंच गई।टमटम की सीट दो भागों में विभक्त थी।आगे की तरफ वाली सीट पर हमारे माँ-पिताजी और हम भाई बहन सीट पर और माँ-पिताजी की गोद में बैठ गये।उसी प्रकार वे सज्जन भी पिछली सीट पर अपनी पत्नी और बच्चों के संग बैठ गये।
हमारी घोड़ा-गाड़ी टिक-टिक,घर्र -घर्र करती गाँव पहुंँच गयी।एक दो गलियों में मुड़ने के बाद माँ ने चालक को मौसी का घर दिखाते हुए वहाँ रुकने को कहा।हमने भी देखा कुछ लोगों के साथ मौसाजी बाहर की कुर्सी पर बैठे थे , वे उठकर जल्दी से अंदर चले गए।
तब-तक पीछे बैठे सज्जन ने कहा -हमें भी यहीं उतारना है।इसपर टमटम चालक ने कहा -ठीक है फिर हम टमटम को घुमाकर ही रोकते हैं।और उसने टमटम घुमा ली।अब हमारा मुख घर के पीछे की ओर था और हमारे सहयात्रियों का आगे।
घर के अंदर से मौसा के साथ मौसी हाथ में जल का लोटा, मिठाई और सिंदूर का डिबिया लेकर हमारी आगवानी के लिए निकली तो मौसा से बोली लीजिए अब आप अपनी बहन को भी नहीं पहचानते। आईं हैं आपकी बहन और मुझे कहा कि आपकी बहन आ गई।मौसा इस चमत्कार पर अचंभित थे। सचमुच नजरों ने इतना बड़ा धोखा कैसे खाया ? मैंने सचमुच इनकी बहन को देखा था टमटम में।
हम सभी को यह समझ में आ गया कि हमारे साथ आने वाले अजनबी मौसा के बहन-बहनोई और उनके बच्चे हैं।
गर्मी से हमारा यूं ही बुरा हाल था।उनलोग के बहस को सुन हम पीछे से झांँक कर देखने लगे तो मौसा जी ने कहा -देखिए तो आपकी बहन भी आई हैं कि नहीं। खैर हम टमटम से उतरकर घर आकर आराम से बैठे। अब शादी समारोह में आनेवाले हर व्यक्ति को यह दिलचस्प बातें बताई जा रही थी।और हम मजे लेकर सुनते रहे।
सुजाता प्रिय 'समृद्धि'
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