कविता (कृपाण घनाक्षरी)
उभरे भाव मन में,
पल-दो-पल क्षण में,
अक्षरों को मिला कर,
शब्द मनके बनाते।
शब्दों को ढाल कर,
कविता में डालकर,
उर के विचार कवि,
पंक्तियों में सजाते।
छंदों के प्रकार में,
बड़े -छोटे आकार में,
गीत का कवि रूप दे,
मन में गुनगुनाते।
रूप-रस औ रंग दे,
योग-संयोग संग दे,
तब छंद के रूप में,
कविता कवि बनाते।
सुजाता प्रिय 'समृद्धि'
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