धरती सज -धज कर तैयार, देखो फागुन आया है।
लगती कितना यह गुलज़ार, देखो फागुन आया है।
चहुंओर हरियाली छाई है,दिखे बस्ती रंग।
हवा चले कुछ ठंडी -ठंडी,सिहर उठा है अंग।
कभी सर-सर चले बयार,देखो फागुन आया है।
पीली-नीली ओढ़ चुनरिया,हंँस रही धरती रानी।
सारी दुनिया से लगे निराली,जैसे कोई महारानी।
पहनी फूलों का प्यारा हार,देखो फागुन आया है।
बेली-चमेली रात की रानी, खिल-खिल कर मुस्काए।
तरुओं पर पलास दहक कर,दिल में आग लगाए ।
डाल पर हंसता है कचनार,देखो फागुन आया है।
सुजाता प्रिय 'समृद्धि'
भले ही पहले जैसी बात न रह गई हो, फिर भी बसंत तो बसंत ही है
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद
Deleteबहुत सुन्दर रचना
ReplyDeleteआभार दी
Deleteफागुन आ ही गया । सुंदर रचना।
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद
Deleteफागुन का सुंदर चित्रण करती पोस्ट।
ReplyDeleteआभार दीदी जी
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद
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