कवि और कविता (मनहरण घनाक्षरी)
१)
कविता लिखते कवि,
दिखती है प्यारी छवि,
चमकता जैसे रवि,
सुर-लय-छंद में।
पिरोते भावों के मोती,
दिखा साहित्य की ज्योति,
कविता के बीज बोती,
है स्वरों के छंद में।
बनाते माला शब्दों के,
लेखन प्यारे पदों के,
प्यारे औ न्यारे पद्यों के,
कुछ है स्वछंद में।
सजाते कागज की क्यारी,
लिखते कविता प्यारी,
सभी लेखों से ये न्यारी
सरल औ बंध में
२)
सरल रूप में बात,
निज मन के जज्बात,
विचारों के झंझावात,
कविता में लिखते।
देते सुंदर आकार,
हरते मन विकार,
कर सपने साकार,
मन को हैं जीतते।
कविता में कह वाणी,
कुछ लिखते कहानी,
कवियों-सा नहीं दानी,
सभी जन रीझते।
करते नहीं विवाद,
हर मन अवसाद,
अंतर्मन के हैं नाद,
कविता में दिखते।
सुजाता प्रिय 'समृद्धि'
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