Wednesday, February 22, 2023

फागुन

धरती सज -धज कर तैयार, देखो फागुन आया है।
लगती कितना यह गुलज़ार, देखो फागुन आया है।

चहुंओर हरियाली छाई है,दिखे बस्ती रंग।
हवा चले कुछ ठंडी -ठंडी,सिहर उठा है अंग।
कभी सर-सर चले बयार,देखो फागुन आया है।

पीली-नीली ओढ़ चुनरिया,हंँस रही धरती रानी।
सारी दुनिया से लगे निराली,जैसे कोई महारानी।
पहनी फूलों का प्यारा हार,देखो फागुन आया है।

बेली-चमेली रात की रानी, खिल-खिल कर मुस्काए।
तरुओं पर पलास दहक कर,दिल में आग लगाए ।
डाल पर हंसता है कचनार,देखो फागुन आया है।

                सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

9 comments:

  1. भले ही पहले जैसी बात न रह गई हो, फिर भी बसंत तो बसंत ही है

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    1. बहुत बहुत धन्यवाद

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  2. फागुन आ ही गया । सुंदर रचना।

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    1. बहुत बहुत धन्यवाद

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  3. फागुन का सुंदर चित्रण करती पोस्ट।

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  4. हार्दिक धन्यवाद

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