मुहब्बत के दीये, मन में जलाओ।
सभी के लिए मन में मुहब्बत लाओ।
दीप जलाकर खुशियां मनाओ।
नफ़रत के अंधेरे मन से भगाओ।
गिले-शिकवे को अब दूर हटाओ।
सभी को अपने गले से लगाओ।
सभी से रहे अब मुहब्बत का नाता।
मोहब्बत सभी के मन को भाता।
आओ मनाए मुहब्बत की दिवाली।
मन का न कोना रहे आज खाली।
सुजाता प्रिय 'समृद्धि'
स्वरचित, मौलिक
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