जगमग-जगमग आयी दिवाली।
बड़ी अनोखी औ बड़ी निराली।
जग से अंधेरे को दूर भगा कर-
हर जगह को रोशन करने वाली।
आओ हम मिल कर दीप जलाएं।
पंक्तियां बनाकर हम इन्हें सजाएं।
प्रेम का दीपक औ प्रीत की बाती-
प्यार का तेल दे इसको सुलगाएं।
अंधकार को हम अब दूर भगाएं।
घर- घर में बस प्रकाश फैलाएं।
नव उजास को भरकर जीवन में-
सबके मन का तम को हर जाएं।
लगता दिशा -दिशा अब बढ़िया।
लरज रही हैं दीपों की लड़ियां।
आ मित्रों संग हम नाचते-गाएं-
फोड़ें पटाखें और फुलझडियां।
आओ अब खूब मिठाई खायें।
नाचें-गाएं हम औ खुशी मनायें।
वैर द्वेष को मन से विसरा कर -
सखियो -मित्रों को गले लगायें।
सुजाता प्रिय 'समृद्धि'
जी सादर धन्यवाद सखी! मेरी रचना को चर्चा अंक में साझा करने के लिए।
ReplyDeleteसुंदर रचना
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद भाई ! दीपावली की अनन्त शुभकामनाएं।
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद । दीपावली की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं।
ReplyDeleteसभी के लिए दीप पर्व मंगलमय हो|सुंदर रचना|
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