पिता
पिता हमारे
जनक हैं हमको
उनसे प्यार।
परिश्रम से
वे हमें पालते हैं
देते दुलार।
पिता से होता
सुखी हमारा यह
है परिवार।
पिताजी होते
हम बच्चों के सदा
ही हैं आधार।
हर संकट
मेरे दूर भगाते
हैं ललकार।
बरगद की
घनी छांव बनते
हाथ पसार।
अबोध बच्चे
को ठोक-पीटकर
देते आकार।
सुख देने को
हरदम रहते
हैं वे तैयार।
सुजाता प्रिय 'समृद्धि'
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