दीप से दीप जलाकर देखो
मन से अंधेरे भगाकर देखो।
दीप से दीप जलाकर देखो।
आओ मनाएं हम आज दिवाली।
कभी नहीं आए रात कोई काली।
मन में सपने सजाए कर देखो।
दीप से दीप जलाकर देखो।
मन में हमारा जब होगा उजाला।
जग से दूर होगा अंधेरा यह काला।
मन में उजाला बसाकर देखो।
दीप से दीप जलाकर देखो।
उर का संतोष ही लक्ष्मी का रूप है।
इसे पाने वाला ही दूनिया का भूप है।
संतोष उर में लाकर देखो।
दीप से दीप जलाकर देखो।
मन से मिटा दो अब अपनी बुराई।
जीवन तुम्हारा हो जाएगा सुखदाई।
मन से बुराई मिटाकर देखो।
दीप से दीप जलाकर देखो।
सुजाता प्रिय 'समृद्धि'
स्वरचित, मौलिक
नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा शुक्रवार (05 -11-2021 ) को 'अपने उत्पादन से अपना, दामन खुशियों से भर लें' (चर्चा अंक 4238) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है। रात्रि 12:01 AM के बाद प्रस्तुति ब्लॉग 'चर्चामंच' पर उपलब्ध होगी।
चर्चामंच पर आपकी रचना का लिंक विस्तारिक पाठक वर्ग तक पहुँचाने के उद्देश्य से सम्मिलित किया गया है ताकि साहित्य रसिक पाठकों को अनेक विकल्प मिल सकें तथा साहित्य-सृजन के विभिन्न आयामों से वे सूचित हो सकें।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
#रवीन्द्र_सिंह_यादव
बहुत ही सुंदर भाव और उतनी ही सुंदर रचना
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