मीराबाई थी ,प्रेम दिवानी।
रच गई अद्भुत,एक कहानी।
व्याह हुआ उदयपुर जानी।
भोजराज की बन गई रानी।
हृदय बसा कान्हा की मूरत।
मोहनी-प्यारी सांवली सूरत।
गोपीनाथ- गिरधर गोपाला।
मोर-मुकुट औ बांसुरी बाला।
सदा ही रही कृष्ण वियोगिनी।
नाचती गाती बनकर योगिनी।
कहती न मेरा तात और माता।
नहीं रक्षा करने को नहीं भ्राता।
व्रज भाषा में काव्य रच गई।
सबके हृदय में सदा बस गई।
उनके काव्यों में बड़ी सरलता।
बड़ी तरलता और निश्छलता।
सरल पद की हैं सभी रचनाएं।
परम्परागत शैली को अपनाये।
देवर राणा ने जब विष भेजा।
पी गई पर न ,जला कलेजा।
जो जन ईश्वर में रखते भक्ति।
उनको मिलती ऐसी ही शक्ति।
सुजाता प्रिय 'समृद्धि'
स्वरचित, मौलिक
No comments:
Post a Comment