आओ आम पेड़ के नीचे ,थोड़ा हम सुस्ता लें।
दिन भर खेतों में काम है करना,थोड़ा तो बतिया लें।
घर से लाई हो गुड़धानी , थोड़ा -थोड़ा खा लो।
खेतों का सुखाड़ मिटा है,उसका ज़श्न मना लो।
अहो भाग्य हमारा जानी, रिमझिम बरसा पानी।
धरती पर हरियाली छाई,पहनी है चुनरी धानी।
हरा- भरा है खेत हमारा, रुत है बड़ा सुहाना।
हवा के झोंके से निकला है, जैसे राग पुराना।
हरे-हरे पौधे के गुलदस्ते,सारे खेतों में सजे हैं।
आज हरी मखमल की चादर, धरती पर बिछे हैं
तुम भी थोड़ा ताल मिला लो, मैं भी थोड़ा गाऊं।
देख बहार वर्षा की आई, मिलकर खुशी मनाऊं।
सुजाता प्रिय 'समृद्धि'
स्वरचित, मौलिक
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