आई है विपदा घोर,
विवश यहां सब लोग खड़े।
दिशा-दिशा चहुं ओर,
सब हैं अपने घर में पड़े।
बड़ा भयंकर रोग,
छाया है दुनियां भर में।
यह कैसा संयोग,
युक्ति नहीं कोई नर में।
सबके जीवन में आज,
फैला है अंधकार घना।
बंद पड़े सब काज,
आना-जाना सब है मना।
कटता नहीं है दिन,
मास दस अब बीत गए।
पल-पल,छन-छन गिन,
सब जन अब भयभीत भए।
होगी अपनी जीत,
आज हैं हम हारे-हारे।
घर में रहें सब मीत,
विमुख होंगे संकट सारे।
उबारो हमको आज,
भगवन तुझपर आस हमें।
कहां छुपे महाराज,
तुझपर है विश्वास हमें।
🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏
सुजाता प्रिय 'समृद्धि'
स्वरचित, मौलिक
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