नारी तू पिंजरे का पंछी ,
तड़प-तड़प रह जाए।
संरक्षण के अधिन सदा ही,
अपना ओज छुपाए।
मन की बातें मन में रखती,
मन-ही-मन रोती है।
अश्रुजल से अंतर की,
पीड़ा सदा धोती है।
घुट-घुटकर रह जाए,
मन की व्यथा न कहने पाए।
अवला नाम का कलंक लगा है,
छुपा है रूप सबल तेरा।
सामाजिक बंधन में जकड़ी हो,
कुण्ठित है मनोबल तेरा।
शक्ति की जननी है तू,
पर, शक्तिहीना कहाए।
माँ बन जन को हृदय लगाती,
बहन बेटी बन देती प्यार।
पत्नी बन तू पुरुषों के,
करती है सपने साकार।
फिर भी तुमको किसी ठाँव,
सम्मान न मिलने पाए।
इस पिंजरे को छोड़ सहेली,
हो जा तू आजाद।
अपने यश -बुद्धि-शक्ति को,
मत कर तू बर्बाद।
जीवन सार्थक तब होगा,
जब जग में पहचान बनाए।
सुजाता प्रिय, राँची🙏🙏
Tuesday, September 10, 2019
नारी
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