जो मेहनत कर अन्न उपजाते,
कूप - ताल खोद प्यास बुझाते,
रहने को आवास बनाते,
शीत-धूप से हमें बचाते,
उन मजदूरों के हम गुण गाते।
तन ढकने को वस्त्र बनाया,
आत्मरक्षा को अस्त्र बनाया,
जेवर-गहनो से हमें सजाया,
गर्मी में हमें दी शीतल छाया,
उन मजदूरों पर हमको माया।
जिनकी मेहनत से जूते- चप्पल,
हाथ छड़ी और टोपी सिर पर,
कल- कारखाने घर सड़क पर,
वस्तुएँ. ढोते रख माथे पर,
मजदूर नहीं ईश्वर हैं भू पर।
जिनकी मेहनत से है फुलवारी,
रंग- बिरंगी कलियाँ प्यारी,
पेड़- पौधे और फलियाँ न्यारी,
जिनकी मेहनत से खेती- बारी,
उन मजदूरों के हम आभारी।
जिसने पर्वत में राह बनाई,
जिसने नदियों में नाव चलाई,
आसमां में विमान उड़ाई,
गाड़ियाँ सड़क बना दौड़ाई,
उन मजदूरों की बहुत बड़ाई।
जिनकी मेहनत से कागज बनते,
कलम बनाया जिनसेे हम लिखते,
कथा- काव्य और नाटक रचते,
पत्र- पत्रिका अखबारों में छपते,
उन मजदूरों को करें नमस्ते।
सुजाता प्रिय🙏
बहुत सुंदर सरल सहज गहन भाव लिये सुंदर अभिव्यक्ति।
ReplyDeleteसार्थक सृजन👍👍
धन्यबाद स्वेता ।भावों को समझने और उत्साह बढ़ाने के लिए।अभिब्यकितियों की अभिव्यक्ति भू एक युक्ति है।
Deleteआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" में शुक्रवार 01 मई 2020 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteजिनकी मेहनत से है फुलवारी,
ReplyDeleteरंग- बिरंगी कलियाँ प्यारी,
पेड़- पौधे और फलियाँ न्यारी,
जिनकी मेहनत से खेती- बारी,
उन मजदूरों के हम आभारी।
बहुत सुंदर आभार काव्य श्रमवीर के नाम सखी ! बहुत बढिया लिखा अपने सरल और सहजता से भरा | सस्नेह