अगर तू रस की रखते हसरत।
यदा- कदा कुछ करले बतरस।
ध्यान रहे तेरे बतरस से,
लगे न किसी के दिल पर ठेस।
दुखती रग को मत सहलाओ,
किसी के मन में ना हो क्लेश ।
ऐसी बोली कभी न बोलो,
जिससे मन में आए नफरत।
यदा-कदा कुछ करले बतरस।
बस चिढ़ाना,दिल बहलाना,
देकर ताना मनभावन।
थोड़ी मनमानी, खींचातानी,
सुनकर खुश हो जाए मन।
रूठे को भी जरा मना लो,
किसी के मन में ना हो गफलत
यदा-कदा कुछ करले बतरस।
किन बातों का क्या है मतलव,
हर भावों का समझो अर्थ।
हँसी- खुशी के महफिल में,
मुँह फुला चुप होना ब्यर्थ।
हँसना और हँसना सीखो,
जीत लो मन सबका हँस-हँस।
यदा-कदा कुछ करले बतरस।
बतरस है लोगों को देता,
जीवन में उल्लास नया।
नोक- झोंक कुछ रोक टोक
तू करता चल परिहास नया।
बतरस से मन प्रफुल्लित होता,
स्वस्थय बनाता जैसे कसरत।
यदा-कदा कुछ करले बतरस।
सुजाता प्रिय
व्वाहहहहह..
ReplyDeleteक्या बात है..
बतरस है लोगों को देता,
जीवन में उल्लास नया।
नोक- झोंक कुछ रोक टोक
तू करता चल परिहास नया।
बेहतरीन...
सादर...
जी दीदीजी सादर नमस्कार।बहुत ही आभारी हूँ सस्नेह प्रोत्साहित करने के लिए।
Deleteआपकी लिखी रचना "साप्ताहिक मुखरित मौन में" शनिवार 25 मई 2019 को साझा की गई है......... "साप्ताहिक मुखरित मौन" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteजी सादर धन्यबाद बहन मेरी लिखी रचना को साप्ताहिक 'मुखरित मौन' में साझा करने के लिए।
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