Wednesday, May 29, 2019

विनती मेरी

हम मौन खड़े वृक्ष कहते हैं,
मत काट मुझे हे मानवजन।
बस  तेरे लिए  विनती मेरी,
मत छाट मुझे हे मानवजन।

शुद्ध वायु निशदिन पहुँचाता,
और  मेघों. को  हूँ  बुलाता।
मैं  पास  तेरे  हे  मानवजन।
मत काट मुझे हे मानवजन।

महामारी  से   रक्षा  करता।
संकट में जीना सीखलाता।
मैं अटल खड़ा हे मानवजन।
मत काट मुझे हे मानवजन।

खग - कुल का मुझ पर डेरा।
मैं   पेट   भरता   हूँ     तेरा।
कर आत्म-तुष्ट हे मानवजन।
मत काट मुझे हे मानवजन।

हर कष्ट सहन कर जी रहा।
हर विष जगत का पी रहा।
बस तेरे लिए हे मानवजन।
मत काट मुझे हे मानवजन।

क्यूँ बना रहा मुझको इंधन।
पर्यावरण ही तेरा है जीवन।
तू समझ जरा हे मानवजन।
मत काट मुझे हे मानवजन
                  सुजाता प्रिय

2 comments:

  1. हम मौन खड़े वृक्ष कहते हैं,
    मत काट मुझे हे मानवजन।
    बस तेरे लिए विनती मेरी,
    मत छाट मुझे हे मानवजन।

    वृक्ष की मनोदशा और महत्व सिखाती बेहद प्यारी रचना...

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  2. जी कामिनी बहन नमस्ते।सादर धन्यबाद उत्साह बर्धन के लिए।

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