Sunday, July 2, 2023

सीख (कहानी)

सीख
रश्मि नित पढ़ाई करने के बाद अपनी सहेलियों के साथ खेलने में मग्न हो जाती।आजकल उसका मुख्य खेल था तितली पकड़ना। उसकी फुलवारी में रंग-बिरंगे फूल खिलते ।उन फूलों का रस चूसने के लिए उन पर रंग-बिरंगी तितलियाँ मंडराती रहती।वे फूलों पर बैठती नहीं कि बच्चे दवे पांँव चल पड़ते उन्हें पकड़ने।थोड़ी-सी कोशिश के बाद किसी के साथ में नीली,तो किसी के हाथ में पीली। किसी के हाथ में हरी,तो किसी के हाथ में लाल और किसी के हाथ में काली तितली आ जाती। फिर क्या ! अपनी-अपनी तितलियों के पंख पीछे कर किसी कुशल प्रतिभागियों से एक-दूसरे से लड़ाते।माता पिता के लाख मना करने पर भी अपने इस प्रिय खेल को नहीं छोड़ते। एक दिन जब रश्मि तितली पकड़ रही थी तो उसके पिताजी ने भरे प्यार से उसे अपने पास बुलाया और बिना कुछ बोले उसके दोनों हाथ पीठ की ओर घुमाकर पकड़ लिए। रश्मि कुछ समझी नहीं।उसने कहा-पिताजी!मेरे हाथ छोड़िए,मैं खेलने जाउंँगी।लेकिन पिताजी ने उसके हाथ नहीं छोड़ा।उसकी मांँ ने खाना खाने के लिए उसे पुकारा। फिर भी पिताजी उसके हाथ में नहीं छोड़े। बाहर फेरी वाले ने आवाज लगाई। रश्मि का मन फेरी वाले का सामान देखने के लिए ललक उठा।बहुत करने पर भी पिताजी ने हाथ नहीं छोड़े। इतनी देर तक हाथ पीछे बंधे रहने से उसके हाथ में दर्द होने लगा।रश्मि ने गिड़गिड़ाते हुए कहा -हे मेरे हाथ छोड़ दें बहुत दर्द हो रहा है। पिताजी ने उसके घर छोड़ दिया।फिर उसके हाथ में पकड़े तितली की ओर इशारा करते हुए कहा-देखो बेटा!जिस प्रकार हाथ पीछे करने से तुम्हारे हाथ दुखने लगे,उसी प्रकार तितलियों के पंख पीछे करने से उन्हें दर्द का एहसास होता होगा। इतनी देर मैंने तुम्हारे हाथ बकड़े तो तुम्हें खेलने का मन करने लगा,भूख लगी, फेरी वाले का सामान देखने का मन करने लगा।तो सोचो तुम लोग इतनी देर तक तितलियों को पकड़े रहते हो,तो क्या इस बीच  उनका मन कहीं जाने या घूमने का नहीं करता होगा ? उन्हें भी भूख लगी लगती होगी। पिताजी ने उसे समझाते हुए कहा ।अकारण किसी को बंधनों में नहीं जकड़ना चाहिए। स्वतंत्रता हर प्राणी का जन्मसिद्ध अधिकार है। हर प्राणी अपना जीवन अपने तरीके से जीने के लिए स्वतंत्र हैं। सबकी इच्छाएं अलग-अलग होती हैं ।रश्मि को सीख मिल गयी। उसने किसी भी जीव को कष्ट नहीं देने का संकल्प लिया।
            सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Saturday, July 1, 2023

नटखट तितलियांँ (कहानी )

नटखट तितलियांँ
 बात बहुत पुरानी है।एक बगीचे में बहुत सारी रंग-बिरंगी तितलियांँ रहतीं थीं।
उन तितलियों में एक रानी तितली थी। जिसकी बातें सभी तितलियांँ मानती थी।
 उनमें कुछ नन्हीं-नन्हीं तितलियांँ थीं।उनके पंख अभी छोटे थे।जिस कारण वे अभी उड़ नहीं पाती थी।
 नन्हीं तितलियों में कुछ चंचल तितलियांँ थीं, जो पंख छोटे होने पर भी उड़ने का प्रयास करती रहती।
उन चंचल तितलियों में कुछ नटखट तितलियाँ थीं। जो अपने नन्हें-नन्हें पंखों से उड़कर शैतानी करती थी।
 उन नटखट तितलियों में एक तितली थी सिम्मी और एक थी रिम्मी। दिन में कभी-कभी बगीचे में घूमते समय दोनों में भेंट हो जाती तो तोतली भाषा में दो चार बातें कर लेती।इस प्रकार दोनों में गहरी दोस्ती हो गई।फिर तो दोनों रोज अपने-अपने घरों से निकलकर बातें करने लगी।एक दिन बातों-बातों में सिम्मी ने रिम्मी से पूछा- रिम्मी यह तो बता हमारी मांँ रोज हमें छोड़ कर कहांँ चली जाती हैं ?
 रिमी ने कहा- मेरी मांँ तो मेरे लिए फूलों का रस लाने जाती है। वही सब की मांँ जाती होंगी। सिम्मी ने पूछा यह फूलों का रस मिलता कहांँ है ?
 रिम्मी बोली मेरी मांँ कहती है इस बगीचे से थोड़ी दूर एक सुंदर फुलवारी है।जिसमें खूब सुंदर-सुंदर रंग-बिरंगे फूल खिलते हैं उन्हीं फूलों का रस चूस कर मांँ हमारे लिए लाती है।
 सिम्मी ने कहा -अगर उस फुलवारी का पता हमें चल जाए तो हम स्वयं वहांँ जाकर खूब रस पीएँ।
दोनों ने उस फुलवारी को ढूंढ निकालने की योजना बना डाली। क्योंकि वे अपने कोमल नन्हें पंखों से उड़ना सीख ली थी।
एक दिन चुपके से उड़ते हुए एक ओर चल पड़ी लेकिन उन्हें कोई फुलवारी नहीं मिली।हांँ एक छोटा सा घर जरूर दिखा।उस घर के आगे क्यारियों में कुछ सुंदर फूल खिले थे ।दोनों सहेलियों को बड़ी भूख लगी थी।उन फूलों पर बैठकर वे रस चूसने लगी।तभी घर के अंदर से एक छोटा सा बालक निकला। उसका नाम था शिल्पू।शिल्पू ने जब दोनों लाल-पीली तितलियों को देखा,तो वह उन्हें पकड़ने के लिए आगे बढ़ा।वह दोनों अभी ठीक से उड़ना नहीं जानती थी, इसलिए भाग नहीं पाईं और शिल्पू ने उसे आसानी से पकड़ लिया।
 दोनों तितलियां भागने के लिए छटपटाती रहीं और शिल्पू उनके पंख पकड़ कर उनसे खेलता रहा।
 दोनों तितलियां को अपनी- अपनी मांँ की याद आने लगी।अब उन्हें समझ में आ गया था कि माँ उन्हें अकेले बाहर निकलने के लिए क्यों मना करतीं हैं। दोनों रो रही थीं।परंतु,सिल्पू तो उसकी आवाज सुन नहीं रहा था।
इस बीच शिल्पू को प्यास लगी।वह दोनों को वहीं छोड़कर पानी पीने चला गया।सिम्मी और रिम्मी जल्दी से उड़ कर भाग चलीं। रास्ते में उन्हें उनकी मांँ मिल गईं। क्योंकि वे उन्हें ढूंढते हुए आ रही थी।मांँ उन्हें बगीचे में रानी तितली के पास ले गई।रानी तितली ने उन्हें बिना किसी से पूछे कहीं जाने के लिए खूब डांट सुनाई।सिम्मी और रिम्मी ने अपने कान पकड़कर रानी तितली से माफी मांगे और यह संकल्प किया कि कहीं भी जाऊंँगी तो मांँ से पूछ कर।

 सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Thursday, June 29, 2023

अहंकार का फल (कहानी)

अहंकार का फल
 एक पेड़ पर घोंसला बनाकर एक मैना रहता था और पेड़ के नीचे बिल में एक चूहा। दोनों पड़ोसियों में बातचीत भी होती थी और समय पढ़ने पर अक्सर दोनों एक- दूसरे की मदद भी करते ।एक दिन बड़ी जोरों की बरसात हुई। घोंसला समेत मैना के पंख भीग गए और वह भोजन लाने नहीं जा सका।तब चूहे ने खेतों से लाकर उसे दाना दिया।लेकिन उस दिन से चूहा को यह घमंड हो गया कि वह मैना से ज्यादा शक्तिशाली है। बातों-बातों में यह बात एक दिन उसने मैना से भी कह दी।मैना ने कहा - ऐसी कोई बात नहीं !थोड़ी देर हवा में पंख सुखाकर मैं भी दाना चुगने जा सकता था। परंतु, जब तुमने दाना दिया तो ठंडक से परेशान मैं आराम करता रहा।
 लेकिन चूहा यह मानने के लिए बिल्कुल तैयार नहीं था ।उसने कहा तुम अपने पंखों से सिर्फ आसमान में उड़ सकते हो। लेकिन मैं जहांँ चाहे जा सकता हूंँ। मैना ने कहा- पंखों से उड़कर ही सही मैं अपनी बुद्धि का प्रयोग कर हर जगह जा सकता हूंँ।हर कठिनाई को झेल सकता हूंँ।
इस बात पर दोनों में काफी बहस छिड़ गई ।अंत में दोनों ने यह निर्णय लिया कि दोनों दिन भर साथ-साथ चलेंगे।जो किसी जगह जाने में असमर्थ होगा वह कमजोर और जो सभी जगह जाएगा वह बलवान होगा।
 दूसरे दिन सुबह से दोनों ने चलना प्रारंभ किया।थोड़ी दूर चलने पर रास्ते में एक जगह ढेर सारा कीचड़ मिला।मैना उड़ कर सूखी जमीन पर जा बैठा। चूहा कीचड़ में फँस गया।निकलने की जितनी कोशिश करता, उतना ही फँसता जाता।यह देख मैंने कहा- चूहा भाई ! चूहा भाई ! मैं तो उड़ कर पहुंँच भी गया।पर तू तो कीचड़ में ही फँसा हुआ है ।
चूहा हार नहीं मानना चाहता था। उसने कहा -अरे मैना ! कीचड़ में तो फंँसेगा तू। मैं तो देख ,यहाँ हलवा बना रहा हूंँ।मैना चुप हो गया ।
किसी तरह चूहा कीचड़ से निकला और दोनों ने फिर चलना शुरू किया।आगे चलकर उन्हें बहुत सारे कांँटे मिले मैना उड़ कर कांँटों से परे बैठ गया और चूहा चलते-चलते काँटों में उलझ गया। मैना ने फिर उसे चिढ़ाते हुए कहा- चूहा भाई! चूहा भाई!मैं तो उड़ कर पहुंच भी गया और तू काँटों में उलझा हुआ है ।
चूहा बोला मैं कहांँ उलझ रहा कांँटों में ? काँटों में तो उलझेगा तू। मैं तो गोदना गोदवा रहा हूंँ।
    मैना मुस्कुराता हुआ उसे देखता रहा ।बड़ी मुश्किल से चूहा काँटों से निकला और मैना के साथ चलने लगा।
आगे खेत में उसे थोड़ा पानी मिला मैना उड़कर पानी के उस पार जा बैठा।लेकिन,चूहा पानी में घुसा और डूबने उतरने लगा।
मैना बोला -चूहा भाई!चूहा भाई!मैं तो पानी पार भी कर गया। लेकिन तू तो वहीं डूब रहे हो।
चूहा बोला -भला मैं कहाँ डूब रहा हूंँ ? मैं तो गंगा-स्नान कर रहा हूंँ।
 फिर वह पानी से निकलकर आगे बढ़ा।अब आगे उनको बिकराल अग्नि से भेंट हुई।मैना आकाश- मार्ग से उड़कर अग्नि से दूर जा बैठा। लेकिन चूहा अपनी बहादुरी दिखाने के लिए अग्नि में प्रवेश कर गया।उसका पूरा शरीर झुलसने लगा।मैना बोला - चूहा भाई! चूहा भाई!मैं तो पहुंँच भी गया। लेकिन तू तो आग में ही झुलस रहे हो।
परंतु वह हट्ठी और घमंडी चूहा हार कब मानने वाला था।
उसने जलते-जलते हुए भी कहा- मैं कहांँ जल रहा हूंँ ? जले मेरा दुश्मन । मैं तो अग्नि-परीक्षा दे रहा हूंँ।
 इस प्रकार अग्नि-परीक्षा की झूठी दलील देते-देते उस हठधर्मी और अभिमानी चूहे के प्राण पखेरू उड़ गए।

शिक्षा-कभी स्वयं को सबसे बड़ा या बलवान समझकर घमंड नहीं करना चाहिए।और ना ही स्वयं को सर्वश्रेष्ठ साबित करने के जोश में अपने होश होने चाहिए ।हर प्राणी में प्राकृतिक प्रदत्त अलग-अलग गुण होते हैं।ईर्ष्या और अहंकार के कारण प्राकृतिक गुणों से टक्कर लेने वालों का ऐसी ही दशा होती है ।इसलिए सदा ही विवेक से काम लेना चाहिए
       सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Friday, June 23, 2023

कविता (कृपाण घनाक्षरी )



कविता (कृपाण घनाक्षरी)

उभरे भाव मन में,
पल-दो-पल क्षण में,
अक्षरों को मिला कर,
शब्द मनके बनाते।

शब्दों को ढाल कर,
कविता में डालकर,
उर के विचार कवि,
पंक्तियों में सजाते।

छंदों के प्रकार में,
बड़े -छोटे आकार में,
गीत का कवि रूप दे,
मन में गुनगुनाते।

रूप-रस औ रंग दे,
योग-संयोग संग दे,
तब छंद के रूप में,
कविता कवि बनाते।

सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Thursday, June 22, 2023

आशा (कृपाण घनाक्षरी)



         आशा ( कृपाण घनाक्षरी )

भूख लगी हो जोर से, मेवा-मिष्ठान भी खाइए,
रूखी सूखी भी खाइए,तो भूख मिट जाएगी।

प्यास लगी हो जोर से, शर्बत-छाछ पीजिए,
ठंडा पानी भी पीजिए,तो प्यास मिट जाएगी।

नींद आई हो जोर से,तोसक लगा सोइए,
या दरी बिछा सोइए,नींद पूरी हो जाएगी।

आस हो किसी बात की, प्यार या मुलाकात की,
जब तक पूरी न हो, आशा ही नहीं जाएगी।
               सुजाता प्रिय 'समृद्धि'

Wednesday, June 21, 2023

पवनपुत्र हनुमान ( दोहा छंद)

पवनपुत्र हनुमान 

हमारे घर पधारिए ,पवन पुत्र हनुमान।
माँ अंजनी के अच्छे,आप रहे संतान।।

जय देव बजरंगबली,जय जय जय हनुमान।
भक्तों के दुःख टालते,सबके कृपा निधान।।

सच्चे मन से लोग जो,करते कभी पुकार।
सदा निभाते साथ वे, करते हैं उपकार।।

सबके मन में हैं बसे,सबको है विश्वास।
पूरण करते कामना, पूरी करते आस।।

शरण हैं प्रभु आपके,कर रहे हैं प्रणाम।
गुण हैं गाते आपके,नित हैं जपते नाम।।

कृपा जरा हम पर करें,दीनों के तुम नाथ।
हम आपके चरणों में,नवा रहे निज माथ।।

हमको भी वर दीजिए,जो है मन में चाह।
पूर्ण कर मनोकामना, सदा दिखाएंँ राह।।
          सुजाता प्रिय 'समृद्धि'🙏🙏

Monday, June 19, 2023

रुपया से बड़ा परिवार (हिंदी भाषा)

रुपया से बड़ा परिवार

सुनो भाई रे ! रुपया से बड़ा परिवार।
हाँ परिवार से बड़ा न रुपया
हजार।
सुनो भाई रे..........
जिसका घर-परिवार बड़ा है वही बड़ा धनवान।
जिसके परिवार में मिल्लत है वही बड़ा गुणवान।
सुनो भाई रे !परिवार को तू रखना सम्हाल।
सुनो भाई रे !......................
बड़े-बुढ़ो से परिवार शोभता सुन ले मेरे भैया।
जिसके घर दादा-दादी,चाचा-चाची
बापू-मैया।
सुनो भाई रे !जिसके घर हो आपस में प्यार।
सुनो भाई रे !...............
भाई-बहना मिलकर जहाँ खाये-खेले साथ।
घूमने-फिरने, पढ़ने-लिखने,जाय पकड़कर हाथ।
सुनो भाई हरे ! बाल-बच्चा करे गुलजार।
सुनो भाई रे !..............
आपस में सब सुख-बाँटे,बटाबे सबके हाथ।
दूध-मिठाई,चूड़ा-भुज्जा,खाये सब मिल साथ।
सुनो भाई रे ! रहे उनके घर में बहार।
सुनो भाई रे ! ...................
               सुजाता प्रिय 'समृद्धि'
           संस्कार न्यूज में प्रकाशित