Friday, May 12, 2023

प्रेरणा दर्पण

प्रेरणा दर्पण

किसी गांँव में दो भाई रहते थे। बड़ा भाई काफी मेहनती और फुर्तीला था।लेकिन अपने छोटे भाई के निकम्मेपन और आलसी स्वभाव से हमेशा खिन्न रहता था। एक बार जब वह अपने छोटे भाई को खेतों के काम में हाथ नहीं  बटाने पर उसे डांँट रहा था, उस समय वहांँ से एक महात्मा जी जा रहे थे। महात्मा जी ने जब उसे अपने भाई पर गुस्सा करते देखा तो बड़े प्यार से उसे अपने पास बुला कर पूछा- "बेटा अपने छोटे भाई पर गुस्सा क्यों कर रहे हो?" बड़े भाई ने गुस्से से चिढ़ते हुए कहा -"महात्मा जी यह मेरा छोटा भाई है ।माँ कहती है यह मेरे शरीर के अंग जैसा है।तो इसे मेरे कामों में हाथ तो बटाना चाहिए।
लेकिन यह कोई काम नहीं करता है। इसलिए मुझे गुस्सा लगता है।" महात्मा जी ने मुस्कुराते हुए बड़े शांत स्वर में कहा-वत्स अभी-अभी तुमने ही कहा तुम्हारा छोटा भाई है और तुम्हारे शरीर के अंग जैसा है।परंतु क्या तुमने कभी अपने अंगों के क्रियकलापों के ऊपर गौर किया है ।तुम हाथ  बटाने की बात करते हो तो ।तुम अपने हाथों पर ही ध्यान देकर देखो। ईश्वर ने तुम्हें दो हाथ दिए हैं। पर क्या तुम्हारे दोनों हाथ एक समान काम करते हैं ? जितना काम तुम्हारा दाहिना हाथ करता है,उतना काम वाया हाथ कदापि नहीं कर पाता । परंतु अगर आवश्यकता पड़ने पर तुम अपने बायें हाथ को कामों में लगाते हो तो वह भी दाहिने हाथ का सहयोग करने लगता है।ठीक उसी प्रकार तुम्हारा छोटा भाई तुम्हारे काम में हाथ नहीं बटाता तो उससे सदा अपना बायां हाथ समझकर प्रेम पूर्वक काम करने के लिए प्रोत्साहित करो। 
बड़े भाई को महात्मा जी की बातों में गहरी सच्चाई की झलक लगी।उसने आदर पूर्वक हाथ जोड़ते हुए महात्मा जी से कहा- महात्मन आपने ठीक ही कहा -अब मैं कभी भ अपने भाई के काम नहीं करने पर क्रोध नहीं करूंगा ।बल्कि प्यार से उसे समझाऊंँगा। महात्मा जी खुश होकर मुस्कुराते हुए अपनी राह चल दिए।
           सुजाता प्रिय समृद्धि

No comments:

Post a Comment