आँसू
स्वभाव से हंँसमुख और सदा मुस्कुराती रहने वाली छोटी आंटी के आंखों में आंसुओं की मोटी- मोटी बूंदें टपकते देखकर आलोचना हतप्रभ रह गई। आंटीजी ! कुछ पल उन्हें यूं ही निहारने के पश्चात उसने भींगे स्वर में उन्हें पुकारा ।लेकिन, आंटीजी की ओर से कोई जवाब नहीं मिला। फिर भी आलोचना ने आंटीजी से पूछ कर यह जानने की कोशिश की कि वे रो क्यों रही है ? पर उनकी जुबान नहीं खुली। बस उनकी आंँखें आँसुओं की बुंदे टपकाती रहीं। शायद आंटी जी बताना नहीं चाहती थीं अपने घर की बात।इसलिए आलोचना ने भी आदर्शात्मक तरीका अपनाया। जब वे बताना नहीं चाहती तो मुझे ही क्या पड़ी है किसी के निजी मामले में दखल देने की ? दादी और बुआ कहांँ है उसने विषय बदलते हुए पूछा ।आशा के विपरीत आंटी जी ने हाथ के इशारे से बताया कि वही आंगन में हैं।शायद आंटी जी चाह रही थी कि वह वहांँ से चली जाए। आलोचना ने भी यही उचित समझा वह आंँगन की ओर चल दी ।उसने देखा वहांँ बैठे सभी के चेहरे पर तनाव व्याप्त है।
क्या है आलोचना ? बड़ी आंटी ने देखते ही उससे पूछा ।
मैं मैं मुन्नी से खेलने आई हूं माहौल देखकर उसने झूठ का सहारा लिया ।अब क्या बताती की छोटी आंटी से बात करने आई थी ।परंतु ,छोटी आंटी तो स्वयं।
मुन्ना तो तुम्हारे घर में ही है - मीरा बुआ ने कहा ।म -म म् मेरे घर में? उसने जेब उसकी झेंप हकलाहट में बदल गई ।सच ! वह अभी तो अपने घर में मुन्ना के साथ खेल रही थी।
हांँ थोड़ी देर पहले ही तो अप्पू उसे ले गया है ।
ओह उसने अनभिज्ञता दिखाते हुए उल्टे पांँव वहांँ से चल दी। बाहर कमरे में छोटी आंटी की आंँखों से उसी प्रकार आंँसू बरस रही थी ।उसने उनसे कुछ नहीं पूछा और अपने घर चली आई।
छोटी आंटी के यह मुक आंँसू ने ना जाने कितनी जुबाने ले ली। कहीं आरोप-प्रत्यारोप का आदान-प्रदान हुआ तो किसी को अपने मन की बातें करने का मौका मिल गया।
आलोचना ने घर पहुंचकर कहा छोटी आंटी रो रही है।उसकी मांँ ने कहा -डांँट -फटकार पड़ा होगा।
क्यों पड़ेगा डांँट-फटकार बिचारी को ? वह कोई गलती कर ही नहीं सकती।दादी-अम्मा ने चिढ़ते हुए कहा ।क्योंकि उनकी नजरों में छोटी आंटी ही एक ऐसी बहू थी जिनमें किसी प्रकार की बुराई नहीं थी।
अरे !वह अपने आप को बहुत होशियार समझती है ।ज्यादा होशियारी दिख लाएगी तो डांँट पड़ेगा ही। छोटी बुआ ने उनकी काबिलियत से जलते हुए कहा।
असल में वह थोड़ी सुस्त है ही। घर के कामों में देरी करेगी तो बात सुनेगी ही ।आखिर छोटों को ही ना आदमी कुछ बोल सकता है। आलोचना की मांँ ने अपना बड़प्पन दिखाते हुए कहा।
हां! ससुराल में छोटा होना तो सबसे बड़ा गुनाह है। छोटी होने के नाते विचारी घर के सारे कामकाज भी संभालती है, कामों में व्यस्त रहने के कारण भूखी- प्यासी भी रहती है ।अपने बच्चों तक की देखभाल नहीं कर पाती और देर-सवेर होने पर डाँट भी सुनती है। कभी-कभार कोई मदद भी तो नहीं कर देता ।छोटी मम्मी ने इसी बहाने अपना कष्ट सुनाया।
काम क्या करती है ?आलोचना की मांँ चिल्लाती हुई बोली। सिर्फ खाना बनाती है बाकी सारा काम- काज तो दाई ही करती है।
खाना बनाने के अलावा भी तो कई काम होते हैं घर में।क्या दिन- रात सबकी जी हजूरी दाई ही करती है ?
जी हजूरी क्या करती है ? आलोचना की मांँ तैस में आकर बोली- आजकल की बहुएँ तो परिवार को देखना ही पसंद नहीं करती । यह नहीं सोचती कि घर आखिर उन्हीं का है।वह तो साल-दो-साल से आई है ।पहले घर के लोगों ने सबको किया तब ना आज आराम चाहती है ।वह अपने पूर्व कर्मों का एहसास दिलाती हुई बोली।
घर उनका है तो बहू का नहीं? छोटी मम्मी ने आदर पूर्वक प्रश्न किया ।यदि उनका घर है तो क्यों अपने घर के कामों से उबती हैं ?
ऊब कहांँ रही है बेचारी ? यदि उबती तो काम ही नहीं करती। हांँ करने के बाद भी कोई पीछे पड़ा रहता है तो बहुत गुस्सा लगता है। सभी गुट बनाकर एक ओर हो जाते हैं और बेचारी एक का नुक्ताचीनी करते रहते हैं। मालिकपना जतलाने के समय घर उनका हो जाता है और काम के समय नयी बहू का।शेष सभी लोग मेहमान हो जाते हैं।यह बात सच है कि पहले घर को उन्होंने ही संभाल रखा था ।पर आज थोड़ी सी मदद कर देने से क्यों कतराती हैं।वह छोटी है तो अवश्य उसे बड़ों के सम्मान में घर के सारे काम करना चाहिए।साथ ही बड़ों का भी फर्ज बनता है कि वह उसकी भावनाओं को समझें, उसका ख्याल रखें,नयी बहू के मन में भी चंद तरह के अरमान रहते हैं।उन्हें क्यों कुंठित किया जाता है?कभी मन-मिजाज खराब हो जाता है तो घर में कोहराम मच जाता है ।
आलोचना की मांँ के पास आगे बहस करने के लिए कोई मुद्दा नहीं बचा था। वह धीरे से वहांँ से खिसक गई और बड़ी बुआ को देखते ही बुदबुदा उठीं -हम भी बहू थी क्या मजाल था कि मुंँह से एक शब्द भी निकले ।
आजकल की बहू मुंँह बजाने में ही अपनी बहादुरी समझती हैं ।कमरे से निकलते हुए छोटी बुआ ने बूढ़ियों समान हाथ नचाते हुए कहा।
आलोचना की मांँ के हट जाने से माहौल शांत हो गया था। लेकिन आलोचना विचारों के भंवर में डूबने लगी । वह सोचने लगी छोटी मम्मी कितनी खूबसूरती से अपने दुखों को बयान कर दी । छोटी आंटी के साथ जाने क्या हुआ ?क्यों रो रही थी वह ? पर उनकी तरफ से अपनी स्थिति का बयान छोटी मम्मी ने कर दिया। उसे छोटी मम्मी की बातों में गहरी सच्चाई की झलक लगी ।वह सोचने लगी -मान लिया पहले दादी मांँ,मम्मी और बुआ ने इस घर का सारा काम संभाल रखा था। लेकिन छोटी मम्मी भी ठीक ही कह रही है कि आज भी थोड़ा बहुत मदद तो उन्हें करना चाहिए।जब मम्मी इस घर में आयी तो कम लोग थे। दादी भी चुस्त-दुरुस्त थी। सुना है पहली बहू के लाड़-प्यार में घर के सभी कामों में हाथ बंँटाती थी। दोनों बुआ भी छोटी थी इसलिए उनमें आज की तरह ननदों वाली अकड़ नहीं थी। मम्मी जो कहती थी दौड़ -दौड़ कर करती थीं।चाचू दुलारे और चटोर थे। चटकीले खाने और पैसे के लालच में खूब सबकी खूब चापलूसी करते थे।घर में पहला पोता-पोती आने पर हम दोनों भाई-बहनों के नखरे भी सभी खूब उठाते थे। इस प्रकार मम्मी पर काम का बोझ कम था। लेकिन आज परिवार बढ़ गया है। एक छोटी मम्मी स्वयं बढ़ीं। एक फूफाजी । तीन भाई -बहन मैं, तीन बड़ी बुआ के बच्चे और दो छोटी मम्मी के । परिवार बढ़ने से काम भी तो बढ़ता है ।एक आदमी कितना करेगा ।थोड़ा-थोड़ा सभी लोग हाथ बटाती तो एक पर भार नहीं होता ।यह भी सच है कि घर के सारे कामकाज छोटी मम्मी करती हैं ।लेकिन उन्हें अपने मन से कुछ बनाने का,कुछ खाने का अथवा किसी को कुछ देने का अधिकार नहीं है। इन सब बातों के लिए उन्हें मम्मी यह बुआ जी से इजाजत लेनी पड़ती है। छोटी मम्मी छोटे-बड़े सभी के हुकुम बजाती हैं ।सब के नखरे उठाती हैं ।पर,कभी वह हम बच्चों को भी कोई काम कह देती हैं तो उन्हें यह सुनने को मिलता है कि -आदेश क्या देती हैं ? कोई तुम्हारे मायके का गुलाम थोड़े ही है । यह भी सच है कि जब उनकी तबीयत खराब रहती है,तब भी उन्हें चैन से आराम नहीं करने दिया जाता। बदन तपते रहता है लेकिन सभी उसे काम नहीं करने का बहाना बताते हैं और यह भी सच है कि कभी वे छोटे पापा के साथ घूमने निकल जाती हैं तो घर में अच्छी खासी हाय तौबा मच जाती है । दादी, मम्मी,बुआ सभी यही कहती हैं कि हम जब नयी थीं तो चौखट के बाहर कदम नहीं रगती थीं। आखिर ऐसा व्यवहार क्यों किया जाता है ससुराल में बहूओं के साथ ? अपने समय की तुलना लोग आज क्यों करते हैं ? क्या पहले के और आज के जमाने में अंतर नहीं ?पहले के लोग अशिक्षित थे । इसलिए बेतुकी रीति-रिवाजों और बेवजह के पदों के पीछे अपना समय नष्ट करते रहते थे ।लेकिन आज के लोग इतने शिक्षित होकर भी इतने संकीर्ण विचार-धाराओं के स्वामी क्यों हैं ?आज की स्त्रियां इतना पढ़ लिख कर भी एक दूसरे के कष्टों को क्यों नहीं समझती ? एक दूसरे की भावनाओं की कद्र क्यों नहीं करती ? एक दूसरे का हाथ क्यों नहीं बटाती ? औरत अपने सास की जिन बातों की शिकायत करती है, वही सब बातें अपनी बहु के साथ क्यों करती हैं ? एक औरत का दूसरी औरत के प्रति इतना कठोर और रौद्रपूर्ण व्यवहार क्यों ? औरतों का औरत के प्रति इतनी संवेदनहीनता क्यों?
सुजाता प्रिय समृद्धि
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