Tuesday, January 3, 2023

ठिठुरता बचपन



ठिठुरता बचपन

  बचपन
 की    वह 
मीठी यादें मैं
  भूल  नहीं 
     पाती ।

     पूस
 की ठिठुरन
 से  जब  मैं
  रहती थी 
 कंपकंपाती।

       दादी 
  अपनी गरम  
दुशाले  हाथ  में 
    लेकर थी 
      आती।

     टोपी 
   स्वेटर के 
ऊपर से  बाँध
   देती थी 
    गाती।

    इतने 
  सारे  गरम
 कपड़ों से  मैं 
    थी बड़ी 
    घबराती।

         तब
     धीरे-धीरे
 चुपके छुपके मैं 
     स्नान घर
      जाती।

     पानी 
  से लबालब 
भरी बाल्टी में 
  अपने हाथ 
    डुबाती।

       भींग
      जाते थे
स्वेटर टोपी भींग 
    जाती वह 
       गाती।

    अम्मा 
  और बाबा 
से प्रमोद भरा 
   मार थी 
   खाती।

      सदा
  ही ठिठुरता 
बचपन मेरा मैं
   ठंडक  से 
  अकुलाती।

 सुजाता प्रिय समद्धि

3 comments:

  1. तब तो घर के बड़े बड़े प्यार से हाथ से स्वेटर बुनते हैं आज सब मार्किट वाले हो गए तो प्यार-दुलार का भी कुछ हाल वैसा ही है
    ठण्ड के बहाने बहुत प्यारी यादें

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  2. जी सादर धन्यवाद बहना नववर्ष की हार्दिक मंगलकामनाएं

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  3. सादर धन्यवाद

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