ठिठुरता बचपन
बचपन
की वह
मीठी यादें मैं
भूल नहीं
पाती ।
पूस
की ठिठुरन
से जब मैं
रहती थी
कंपकंपाती।
दादी
अपनी गरम
दुशाले हाथ में
लेकर थी
आती।
टोपी
स्वेटर के
ऊपर से बाँध
देती थी
गाती।
इतने
सारे गरम
कपड़ों से मैं
थी बड़ी
घबराती।
तब
धीरे-धीरे
चुपके छुपके मैं
स्नान घर
जाती।
पानी
से लबालब
भरी बाल्टी में
अपने हाथ
डुबाती।
भींग
जाते थे
स्वेटर टोपी भींग
जाती वह
गाती।
अम्मा
और बाबा
से प्रमोद भरा
मार थी
खाती।
सदा
ही ठिठुरता
बचपन मेरा मैं
ठंडक से
अकुलाती।
सुजाता प्रिय समद्धि
तब तो घर के बड़े बड़े प्यार से हाथ से स्वेटर बुनते हैं आज सब मार्किट वाले हो गए तो प्यार-दुलार का भी कुछ हाल वैसा ही है
ReplyDeleteठण्ड के बहाने बहुत प्यारी यादें
जी सादर धन्यवाद बहना नववर्ष की हार्दिक मंगलकामनाएं
ReplyDeleteसादर धन्यवाद
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