Thursday, February 3, 2022

छोटे बच्चों की छोटी सरस्वती मां



 छोटे भक्तों की छोटी सरस्वती मां

रविवार की छुट्टी चंदा देने में ही गुजर गया। दसवीं बार चंदा देकर लान में बैठी और उनके द्वारा चंदा के ज्यादा पैसे देने का आग्रह, मनुहार, दबाव सभी बातें याद कर झल्ला रही थी कि फिर किसी ने होले-होले गेट बजाएं ।मैंने नजरें उठाकर गेट की ओर देखा, कोई नजर नहीं आया ।मैं अपने मन का वहम समझकर नजरें नीची कर ली। फिर वह गेट बजने के ठक ठक ठक  इस बार मैं उधर देखी तो बहुत ही मधुर आवाज में किसी बच्चे ने पुकारा आंती ! मैं सोची शायद बगल का बच्चा होगा। बोली अंदर आओ ।तुरंत गेट खोल कर पांच से सात साल के छः -सात अनजाने बच्चे अंदर प्रविष्ट हो गए ।
मैंने आश्चर्य से पूछा क्या बात है ? उन्होंने विनम्र स्वर में कहा चंदा दीजिए अंती।
मैंने उनसे पूछा -कहां का चंदा? एक बच्चे ने तुतलाते हुए कहा- छिछु-छंगम का। मैंने पूछा यह शिशु संगम कहां है ?
यह पलाथा फिल्द में है।
 मैंने कहा -तो तुम लोग को चंदा मांगने क्यों भेजा गया ?
भेदा नहीं गया। हम लोग अपने आए हैं ।
वहां पूजा कौन करेगा ?
हम लोग कलेंगे। 
तुम लोग इतने छोटे-छोटे बच्चे हो और पूजा करोगे।
 इतने छोटे होकर हम पलाई कलते हैं, तो छलछती मां की पूदा नहीं करेंगे ?
मैं सोची शायद उन लोग घर में पूजा कर रहे हैं ,या किसी समूह में शामिल होंगे । इसलिए चंदा देने के लिए उठी ।क्योंकि मेरा मानना है कि यदि हम चंदा नहीं देंगे तो इतने भव्य श्रृंगार -सज्जा के साथ कोई एक व्यक्ति पूजा कैसे करेगा आखिर पूजा में घूमने का आनंद और मां सरस्वती  के दर्शन और प्रसाद ग्रहण करने हम भी तो जाते हैं ।इसलिए यथासंभव चंदा देकर सहायता तो हमें भी करना चाहिए ।
मैं जानती थी कि कितना भी चंदा दो उसमें वृद्धि के लिए वे जरूर कहेंगे ।इसलिए दस दस के कुछ नोट और एक के कुछ सिक्के हाथ में लिए उनके पास आए और ₹11 बढ़ाती बोली लो चंदा।
इतना थे क्या होगा आंटी ?एक ने मुस्कुराते हुए कहा 
क्यों नहीं होगा तुम छोटे हो ।
नहीं आंटी और दीजिए दूसरे ने कहा।
 कितना दूं  ?दस रुपए और दे दूं ?
 नहीं कुछ औल।
 कितना 10 और ?
नहीं उसने ठुनकते हुए कहा ।
मैंने हंसते हुए उन नन्हे- मुन्ने शिशुओं को निहार रही थी ।
उनमें से एक ने कहा -आंती मैं इंछाफ की बात कहता हूं ।हम छभी के हाथों में आप ग्यारह-ग्यारह रुपए दे दीजिए ।
उनकी तोतली इंसाफ से मुझे बहुत हंसी आई और मैंने सब को ग्यारह-ग्यारह रुपए पकड़ा दी ।
वे खुशी-खुशी चले गए 
मूर्ति विसर्जन के दिन हाथ में कैमरा लेकर मैं गेट पर खड़ी होकर सरस्वती माता की मूर्तियों का विसर्जन हेतु ले जाते देख रही थी ।क्योंकि सारी मूर्तियां मेरे घर के सामने से ही गुजरती थी अचानक शिशुओं के दल ने आकर कहा आंती! प्रसाद ले लीजिए। मैंने हाथ बढ़ाकर प्रसाद ले लिया ।चंद दाने इलायचीदाने में जो श्रद्धा उमड़ी वह लड्डू -बूंदी वाले प्रसाद में भी नहीं ।तभी उनमें से एक ने कहा देखिए आंती हमारी सरस्वती मां।
 मैंने देखा एक ठेले पर मात्र 2 फुट की सुंदर -सलोनी सरस्वती मां हाथों में छोटी वीणा लिए होठों पर स्निग्ध मुस्कान लिए मुस्कुरा रही हैं ।मैं अवाक देखती रह गई। उनमें से एक ने कहा देखिए आंटी आपने कहा हम छोटे-छोटे बच्चे पूदाा  कैछे करेंगे ?लेकिन किए ना। मुझे याद आया मैं कैमरा लेकर आई थी मैं झट छोटी सरस्वती मां के साथ छोटे शिशु के फोटो खींचे और पूछा -कहां मूर्ति विसर्जन करोगे ?
उन्होंने कहा दैम में ।
तुम लोग डैम जाओगे ?मैं घबरा उठी 
हूं छोटा वाला डैम में।
फिर भी तुम लोग ग् ग्? मैं हकलाती हुई बोली तो ठेला चालक ने मुझे आश्वस्त करते हुए कहा नहीं मैं विसर्जन करूंगा। इन्हें पानी के पास नहीं जाने दूंगा। दूसरे साल वे चंदा मांगने आए तो अपना परिचय दिया जिनका आपने फोटो खींचा था ।वह बच्चे  प्रत्येक साल बड़े होते गए लेकिन चंदा मांगने के समय उनका परिचय वही था शिशु -संगम जिनका आपने फोटो खींचा था। और मैं दस साल बाद भी उन बढ़ते बच्चों की बड़ी होती सरस्वती प्रतिमा को देख खूब हंसती हूं।
 सुजाता प्रिय समृद्धि

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