सखी सुनो
शीला-
सखी सुनो मेरी यह बतिया।
नींद नहीं मोहे आती रतिया।
परीक्षा सिर पर आन पड़ी है।
लगती यूं मुश्किल की घड़ी है।
एक इस बार पाठ बहुत है भारी।
ऊपर से यह कोरोना महामारी।
बंद रहे हमारे इतने दिन कालेज।
आन-लाइन में ना मिलता नालेज।
हमारी परीक्षा कैसे पार लगेगी।
बता कैसे हम-सब पास करेंगी ?
सुशीला-
ऐ सखी सुनो तुम ना घबराओ।
हाँ नियम बनाकर पढ़ती जाओ।
मेहनत का फल जरूर मिलेगा।
उत्तीर्णता का प्रसून खिलेगा।
माना मुश्किल की घड़ी आयी।
घंटा खुशियों पर बनकर छायी।
फिर भी हम सबको पढ़ना होगा।
और राह नयी नित गढ़ना होगा।
भाग रहा अब कोरोना महामारी।
आएगी वापस अब खुशियां सारी।
सुजाता प्रिय 'समृद्धि'
जी नमस्ते ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (१८-०२ -२०२२ ) को
'भाग्य'(चर्चा अंक-४३४४) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
बहुत सुंदर।
ReplyDeleteबहुत ही शानदार रचना!
ReplyDeleteपरीक्षा का दबाव कुछ ऐसा होता है ! कब बसंत लग कर खत्म हो गया कब फागुन लग गया कुछ पता ही नहीं चलता है!
वाह!सखी बहुत खूबसूरत सृजन।
ReplyDeleteचिंता भी, समाधान भी
ReplyDeleteवाह
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना
मेरे ब्लॉग से जुड़ें
ReplyDeleteआभार