शिवरात्रि व्रत की महिमा
एक बार नारद जी ने ब्रह्माजी से प्रश्न करते हुए कहा- शिवरात्रि को भगवान शंकर का विवाह माता पार्वती से हुआ, यह तो हमें ज्ञात है ।किन्तु, शिवरात्रि को रात्रि जागरण एवं दीप प्रज्वलित करने की महिमा का क्या विधान है तथा इसके करने से हमें कौन सा फल प्राप्त हो सकता है?कृपा कर हमें बताएं।
इस पर ब्रम्हा जी ने कहा-
आदि काल में कपिलपूरी में यज्ञदत्त नाम के एक विद्वान ब्राह्मण थे ।उनका पुत्र गुणानिधि बड़ा बुद्धिमान और चतुर था।परंतु कुमार्ग में पढ़कर धर्म और कर्म से भटक गया। वह खिलाड़ियों, जुआरियों और गाने- बजाने वालों के साथ रहने लगा और अपने पिता की संपत्ति लूटाने लगा।
उसकी मां उसे हमेशा रोकती और समझाती कि तुम्हारे पिता बहुत ही विद्वान महात्मा हैं। परंतु साथ -साथ बहुत बड़े क्रोधी भी हैं ।यदि उन्हें तुम्हारी असलियत पता चल जाएगा तो तो बड़ा अनर्थ होगा।वह तुम्हारा और मेरा त्याग भी कर देंगे ।लेकिन यज्ञदत्त पर उसका कोई प्रभाव ना पड़ता।
यज्ञदत्त जब कभी गुणानिधि के घर के बाहर रहने के बारे में अपनी पत्नी से पूछते वह पुत्र -मोह के कारण बात बना कर टाल देती ।इस प्रकार पुत्र के कुकर्मों से अनभिज्ञ यज्ञदत्त ने अपनी एक अंगूठी किसी जुआरी के पास देखा तो कहा -यह अंगूठी मेरी है।
जुआरी ने तन कर कहा -यह अंगूठी आपकी नहीं है ।बल्कि मेरी अंगूठी देखकर आपकी नियत बिगड़ गई है।
यज्ञदत्त ने कहा- यह अंगूठी मुझे राजा के यहाँं से इनाम में मिली है ,जिसे तुम ने चुरा ली ।
चोरी के आरोप लगने से जुआरी क्रोधित हो उठा और गरज कर बोला -मैंने आपकी अंगूठी नहीं चुराई बल्कि आप के पुत्र ने इसे मेरे पास जुए में हारा है। उसने मेरे पास बहुत सारे बहुमुल्य प्रसाधन भी हारा है ।आप जितने धर्मात्मा हैं ,आपका पुत्र उतना ही बड़ा बदमाश है ।लेकिन आप एक विद्वान होकर भी अपने पुत्र के कारनामे को नहीं जान सके।
जुआरी की बात सुन यज्ञदत्त का लज्जा के मारे सिर झुक गया।वे मुंह ढक कर घर पहुंचे और पत्नी से पूछा -गुण निधि कहांँ है , तथा वह अंँगूठी कहां है ,जो मुझे राजा के यहांँ से मिली थी ? पत्नी ने कहा- वह अंँगूठी उबटन लगाते वक्त मैंने यहीं कहीं रखी थी ।यज्ञदत्त ने गुस्से में कहा -तुम झूठी हो ।जब कभी मैंने गुण निधि के बारे में पूछा तुमने टाल दी। फिर उन्होंने घर के सारे कीमती सामानों को गायब देखा तो हाथ में जल लेकर पत्नी और पुत्र को तिलांजलि दे दी और एक ब्राह्मण की कन्या से विवाह कर लिया ।जब गुणानिधि को पता चला कि उसके कुकर्मों के कारण पिता ने उसे और उसकी मां का त्याग कर दिया है तो अपनी करनी पर पछताता हुआ वह भूखा प्यासा एक शिव मंदिर के पास बैठ गया ।उस दिन शिवरात्रि का व्रत था। लोगों ने शिवजी का पूजन किया और तरह-तरह के पकवान चढ़ाए। फिर वे उस मंदिर में ही सो गए। उन्हें सोता देख गुणनिधि मंदिर में प्रविष्ट होकर शिवजी पर चढ़ाए गए प्रसाद को उठाकर बाहर भागा ।भागते समय उसका पैर एक शिवभक्त से टकरा गया ।उसकी नींद टूट गयी और वह चोर- चोर चिल्लाने लगा ।उसकी आवाज सुन सभी वक्त जाग गए और दौड़ कर भागते हुए गुणनिधि को पकड़ लिया और उसे इतना मारा कि वह वहीं पर मर गया ।उसे मरते ही यमदूत ने आकर उसे घेर लिया और उसे निर्दयता पूर्वक मारने लगे ।
उसी समय भगवान शिव ने अपने गणों से कहा -यद्यपि गुणनिधि बहुत पापी दुराचारी और कुकर्मी है ।फिर भी उसने शिवरात्रि का व्रत किया, रात्रि जागृत किया , हमारे पूजन को देखा, हमारे दर्शन किए और रात्रि में अपना वस्त्र फाड़कर दीपक में बाती डालकर लिंग के ऊपर गिरती छाया का निवारण किया है ।हमारे गुणों के प्रसंगों को सुनने का धर्म कार्य किया इसलिए वह हमारे लोक को आएगा। भगवान की आज्ञा प्राप्त कर उनके त्रिशूल धारी पार्षदों ने घटनास्थल पर पहुंचकर बोले- यमराज के गणों ! तुम अब इस परम धर्मात्मा ब्राह्मण को छोड़ दो।
यमदूत ने कहा -यह तो दुष्ट महापापी, कुकर्मी मांस तथा मदिरा का सेवन करने वाला, पर स्त्री तथा वेस्यागामी है। माता- पिता की आज्ञा न मानने वाला चोर तथा जुआरी है ।इसलिए हम लोग इसे ले जाएंगे । यमदूतों की बात सुनकर शिव के पार्षदों ने कहा - यह पापी था किंतु उसका सबसे बड़ा कर्म यह है कि इसने पुराना कपड़ा जलाकर शिवालय में प्रकाश किया और रात्रि का जागरण किया ।शिवालय के द्वार पर बैठकर भगवान सदा शिव का पूजन को देखा और हरि कीर्तन को सुना ।इसलिए भगवान सदाशिव की इच्छा अनुसार यह दोष रहित और पाप मुक्त हो गया।अब यह हमारे साथ जाएगा।
यमदूतों ने कहा-आपकी आज्ञा सिर आंँखों पर। इतना कह कर यमदूत ने उसे छोड़ दिया।
सदाशिव के पार्षद उसे अपने साथ ले गए ।
यमदूतों ने जाकर सारा वृत्तांत यमराज से कहा। जिसे सुन यमराज ने कहा -जो व्यक्ति भस्म रमाए हुए हो , रुद्राक्ष की माला धारण किए हो , शिवलिंग का पूजन करता हो ,छल से ही सही -शिव का गुणगान करता हो, चोरी से ही सही शंकर भगवान का प्रसाद ग्रहण करता हो ,उसके पास भूल कर भी नहीं जाओ। यह कहकर यमराज ने भगवान सदाशिव को प्रणाम करते हुए कहा -हे प्रभु !हमारे पार्षदों के इस अनजाने दोष को क्षमा कर दें । यमदूतों से मुक्ति पाकर गुणनिधि श्री शिवलोक को गया और कुछ दिन सुख भोग कर कलिंग देश के राजा इंद्रमणि के पुत्र अरिंदम के नाम पर जन्म लिया ।अरिंदम भगवान शिव का अनन्य भक्त था। महाराज इंद्रमणि अपने पुत्र में उदारता, वीरता धीरता और गंभीरता इत्यादि गुण देखकर उसे राज्य पाठ देकर तप करने वन चले गए ।सिंहासनारूढ़ होते ही अरिंदम ने प्रजा को आज्ञा दी कि सभी लोग प्रतिदिन शिवालयों में दीप प्रज्वलन करें ।उनकी इस आज्ञा से राज्य भर के समस्त शिवालय प्रकाश से जगमगा उठे। राजा अरिंदम ने अपने न्याय से प्रजा को प्रसन्न किया तथा दीर्घकाल तक राज्य का सुख भोग कर शिवलोक को गया।ब्रह्मा जी कहते हैं -हे नारद ! शिवजी की थोड़ी सेवा भी बहुत फलदायक प्रमाणित होती है ।यज्ञदत्त के पुत्र गुणनिधि का यह चरित्र जो सुनेगा उसकी समस्त कामनाएं पूर्ण होगी और उसके मन को बड़ा संतोष प्राप्त होगा तथा वह अपने जीवन में सदा सुखी एवं प्रसन्न रहेगा।
बोलो -सदाशिव शंकर भगवान की जय!
उमापति महादेव की जय !
सुजाता प्रिय 'समृद्धि'
स्वरचित (शिव जी की महिमा पर आधारित)
No comments:
Post a Comment