विद्यालय के निकट सफेद रंग की गाड़ी रुकते देख ग्राम -वासी काना-फुसी करने लगे। कहीं यह टीकाकरण की गाड़ी तो नहीं ?
इससे बचने का क्या उपाय है?
तभी गांव के लठैतो ने आगे बढ़ते हुए कहा- किसी को कुछ सोचे के कोय जरूरत नै है।हमरा डंडा के आगे केकरो मजाल नै है कि जबरदस्ती टीक्का दे देगा।
साला सब सुइया देके अउरो सबके बीमार कर देता है।
तभी गांव के मुखिया जी का बेटा, जो शहर में रहकर पढ़ाई करता है बाईक से वहां पहुंचा और बोला- नहीं , कोई भी इन टीकाकरण कर्मियों के साथ मार -पीट अथवा दुर्व्यवहार नहीं करेगा।
मुझे पता चला कि आस-पास के गांव के लोग टीकाकरण के लिए आए चिकित्सा-कर्मियों को गालियां देने लगे और मार -पीट कर गांव से भगा दिए।
इस लिए मैं अपनी पढ़ाई हर्ज कर जन -जागरुकता फैलाने यहां आया हूं।
आप लोग टीका लगवाने से डरें नहीं।यह टीका कोविड-19नामक वैश्विक बीमारी के रोकथाम के लिए लगा था रहा है ।वह तो अपनी-अपनी शारीरिक क्षमता की बात है कि किसी को थोड़ी सर्दी-खासी अथवा बुखार हो जाता है, और किसी को कुछ भी नहीं।
आप-सभी मन की भ्रांतियों को दूर कर टीका लें और सभी जन को टीका लेने के लिए प्रेरित करें। तभी इस बीमारी का निराकरण हो सकेगा।
गांव के लोगों के साथ आ रहे मुखिया जी अपने बेटे को लोगों को जागरूक करते देख गर्व से मुस्कुरा उठे। और लठैतों को देख संयत स्वर में बोले- सर्वप्रथम मैं टीका लूंगा।तुमलोग प्रत्येक व्यक्ति टीका लगवाने के लिए बुला लाओ। सभी को टीका देकर यह चिकित्सक दल यहां से वापस जाएंगे। फिर क्या था . . . . . . . . . . . . .
सुजाता प्रिय 'समृद्धि'
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