Wednesday, January 6, 2021

मुखड़े पर मुखौटा



आगत युग में नारियों को,
         अपना रूप बदलना होगा।
अपने सुंदर मुखड़े पर हमें,
       अलग मुखौटा रखना होगा।

जगह-जगह पर गिद्ध खड़े हैं,
                 नयन उठाकर देखो।
नोच-खसोट खाने को आतुर,
             जिधर भी नजरें फेंको।
उनको मार भगाने हमको,
               तुरंत सम्हलना होगा।
अपने सुंदर मुखड़े पर हमें,
       अलग मुखौटा रखना होगा।

बहुत बनी हम शील अहिल्या, 
                  बनी द्रौपदी-सीता।
बहुत बनी सुंदर-सुकोमल,
                सुहृदया - सुपुनीता।
सती अनुसूया के पथ पर,
         अब हमको चलना होगा।
अपने सुंदर मुखड़े पर हमें,
     अलग मुखौटा रखना होगा।

उस मुखौटे पर दृढ़ता के,
             छलकाना होगा पानी।
रणचंडी बन रचनी होगी,
        वीरता की अलग कहानी।
अब मन से कोमलता तजकर,
                क्रूरता धरना होगा।
अपने सुंदर मुखड़े पर हमें,
      अलग मुखौटा रखना होगा।

      सुजाता प्रिय 'समृद्धि'
        स्वरचित, मौलिक

6 comments:

  1. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज गुरुवार 07 जनवरी 2021 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  2. हार्दिक धन्यवाद प्यारी दिव्या!

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  3. बहुत सुंदर अभिव्यक्ति

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  4. सादर धन्यवाद सखी

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