Friday, January 29, 2021

इसे कहते हैं मानवता



अपना सामान समेटता हुआ मनोज उठ खड़ा हुआ।बस उसके गांव पहुंच चुकी थी।वह बस रोकने के लिए कहता इससे पहले ही बस रुक गई।कण्डक्टर ने कहा-बस आगे नहीं जाएगी। सड़क पर एक ट्रक पलट गया है। यात्री कम ही बचे थे। सभी जल्दी-जल्दी उतरने लगे।वे बोल रहे थे अब तो हमें अपने गांव तक पैदल ही जाना होगा। अभी कोई सवारी भी नहीं मिलेगी।शाम हो गई थी । अंधियारा छाने लगा था। मनोज अपना गांव पहुंच चुका था, इसलिए उसे कोई चिंता नहीं थी। बस से उतरा तो देखा एक युवती बस से उतरकर पगडंडियों पर चली जा रही थी। अचानक वह खेतों की ओर उतरकर चलने लगी। मनोज ने उसे टोकते हुए कहा-आप उस ओर क्यों जा रही हैं ? 
युवती ने तिरछी नजरों से उसे देखते हुए कहा- आपको मतलब ।
वह निरुत्तर हो गया।फिर भी संयत स्वर में कहा- मतलब तो कुछ नहीं।पर, मैं आपको सचेत कर रहा हूं कि आप जिस ओर जा रही हैं उधर पानी का जमाव था इसलिए वहां दलदल है। आपके पांव उधर धंस सकते हैं और आप नाहक परेशानी में पड़ जाएंगी।
अब युवती कुछ शांत हुई सहमकर रुक गई।
मनोज ने पूछा- आपको किसके घर जाना है ?
उसने नदी के उस पार वाले गांव की ओर इशारा करते हुए कहा- मुझे उस गांव में जाना है इसलिए सोची इधर से तिरछा चली जाऊं तो जल्दी पहुंचूंगी।
मनोज ने कहा -अंधियारे में अकेली नदी पार करना ठीक नहीं। पांच मिनट रुकिए । सामने मेरा घर है।सामान रखकर आता हूं तो साथ चलूंगा। युवती असमंजस की स्थिति में खड़ी रही।
वह जल्द ही अपने घर से वापस आ गया।अब उसके हाथ में टार्च था और उसके साथ दो अन्य लड़के भी थे।जब वे युवती के पास पहुंचे तो वह झिझकती हुई उनके साथ चल दी। रास्ते भर वह डरी सहमी सी रही यह उसके चेहरे से साफ झलक रहा था।नदी जल विहीन थी जल्द ही वे उसके गांव पहुंच गए।
अब वह तेजी से अपने घर की ओर बढ़ी जा रही थी।जब वे उसके घर के निकट पहुंचे तो उसके घर वाले उसी ओर आ रहे थे उसे लेने।उन्हें पता चल चुका था कि सड़क जाम है।
युवती ने उन्हें बताया कि किस तरह सड़क जाम रहने के कारण उसे दूसरे गांव में उतरना पड़ा। और अकेली देखकर वे उसे साथ छोड़ने आए।
सारी बातें सुनकर अनायास उनके मुंह से निकल पड़ा-"इसे कहते हैं मानवता"
उन्होंने मनोज तथा उसके भाइयों की खूब सराहना की फिर उन्हें रोककर चाय-नाश्ते के लिए कहा ।लेकिन उसने कहा- देर होने से मेरे घर के लोग भी चिंतित होंगे।वह उन्हें नमस्कार करता हुआ वापस चल पड़ा।
सभी लोग उसे प्रसंशा भरी निगाहों से देख रहे थे।
          सुजाता प्रिय 'समृद्धि'
           स्वरचित, मौलिक

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