अभी तो हम हैं छोटे बच्चे,
काम अभी मत करने दे।
इस जीवन की राह कठिन है,
राह तो थोड़ा गढ़ने दे।
कलम छोड़, कुदाल धरूँगा,
होगी मुझपर मनमानी।
पढ़-लिखकर जो काम करूँगा,
उसमें है अपनी शानी।
पढ़ने-लिखने की उम्र हमारी,
हमें भी थोड़ा पढ़ने दे।
साक्षरता का अभियान चला है,
हमें भी साक्षर बनने दे।
मंटू ढोता ईट और बालू,
संटू अखबार है पहुँचाता।
भैया गली-गली फेरे दे,
सब्जियाँ है बेचने जाता ।
बस्ते की जगह मोट ढुलबाकर,
जुल्म-सितम मत सहने दे।
आगे भार उठाना है जीवन का,
अभी तो थोड़ा बढ़ने दे।
दीदी की किताब-कॉपियाँ,
तख्ती पर ही रह जाती है।
विद्यालय के बदले घर-घर जा,
खाना वह पकाती है।
मुनियाँ धोती घर-घर बर्तन,
औ झाड़ू-पोछा न करने दे।
बेटी बचाओ,बेटी पढा़ओ का,
मान भी थोड़ा रहने दे।
सुजाता प्रिय 'समृद्धि'
जीवंत चित्रण किया है आपने दीदी बाल मजदूरों का।
ReplyDeleteबाल मजदूर कोई समस्या नहीं समाज में मजबूरियों की गाँठ है।
बहुत-बहुत धन्यबाद श्वेता!
ReplyDeleteमार्मिक काव्य चित्र सुजाता जी , जो शोषित मन की करुण कथा कहता है | बाल मन के सपने इअस्मय चिंताओं की भेंट चढ़ जाते हैं | ये हमारी दूषित व्यवस्थाओं का परिणाम है | प्रभावी रचना |
ReplyDeleteसादर धन्यबाद सखी रेणु जी।
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