ए माई कुछ तो खाने को दे।पाँव दुख रहा है।कह बापू के ।मुनियाँ के उतार के हमरा कंधा पर चढ़ा ले।
थोड़ा आउर चल बेटा ! मंगरी बेटे को बहलाती ललकारती हुई पल्लु में बंधी मुढ़ी खाने को देती है।
बेचारा बुधवा अनसुनी किये बेटी को कंधे पर संभालता हुआ सोंच रहा है तीन -चार दिन और चलकर घर-परिवार के बीच पहुँच जाएँगे।अभी चार दिन पहले ही लॉक डाउन से रोजगार छिन जाने के कारण से भूख से व्याकुल हो पत्नी के साथ मौत को गले लगाने का फैसला किया।पर चार बच्चों का मोह ने कोरोना वायरस से सामना करने का हौसला बढ़ाया और चल पड़ा सैकड़ों किलो मीटर दूर पैदल अपने गाँव ।
गाड़ी की तलाश में आगे बढ़ता हुआ बेटा चिल्लाया- माई-बापू जल्दी आ ,एक गाड़ी लगी है।
मंगरी और बुधवा उर्जावान हो गए।दोनो बेटे- बेटी को गोद में उठाकर गाड़ी के निकट पहुँचे। मजदूरों से खचाखच भरी दुर्घटाग्रस्त ट्रक के हृदय विदारक दृश्य देख उनका कलेजा मुँह को आगे गया।
बुधवा के पाँव काँपने लगे,मंगरी दहाड़े मारकर विलाप कर उठी,चारो बच्चे सकते की हालत में दुर्घनाग्रस्त ट्रक को निहार रहे थे ।जैसे ट्रक में लदे सभी घायल और मृतक मजदूर उनके अपने परिवार जन हों।दुर्घटना स्थल के निकट न कोई आवादी थी ना ही आवागमन।यह तो छुपते-छुपाते ईधर कच्चे रास्ते से गुजर रहा था। शायद नाले का ज्ञान नहीं था सो गाड़ी पलट गया।
अचानक भूखा प्यासा थका-हारा बुधवा में कहाँ से शक्ति का संचार हुआ कि वह अपनी फटी-मैली गमछी को कमर में बाँधकर मंगरी को ढांढस बँधाता हुआ बोला- ' रो मत पगली '।चल हम इन्हें बचाने- निकलने का काम करते हैं।
मंगरी आँसु पोछती हुई बोली।हाँ जरूर बचाएँगे हम।ये भी तो हमारे परिवार हैं।ये भी मजदूर ,हम भी मजदूर।
बच्चे सहमत हो हाथ बँटाने लगे।
सुजाता प्रिय 'समृद्धि'
Monday, May 25, 2020
रो मत पगली ( लघु कथा)
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मार्मिक लघुकथा सुजाता जी | विपदा में भी इंसानियत की लौ जगाता बुधवा एक प्रशंसनीय पात्र है |
ReplyDeleteसादर धन्यबाद सखी रेणु जी।आपकी टिप्पणियाँ उर्जा का संचार करती हैं।
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