थम गई है अब तो रफ्तार हाय रे जिंदगी।
लॉक डाउन में है गिरफ्तार सबकी जिंदगी।
बाधित हैं सेवाएँ औ बंद अब बाजार हैं।
दरवाजे के अंदर हम रहने को लाचार हैं।
और नहीं है दूसरा हथियार हाय रे जिंदगी।
लॉक डाउन में है गिरफ्तार सबकी जिंदगी।
जाना नहीं विद्यालय, जाना नहीं है दफतर।
मिलना नहीं किसी से रहना है घर के अंदर।
ठप्प पड़े हैं सारे कारोबार हाय रे जिंदगी।
लॉक डाउन में है गिरफ्तार सबकी जिंदगी।
आता नहीं है माली, आता नहीं है मेहतर।
आता नहीं है नाई, आता नहीं है नौकर।
साफ करते खुद ही घर-बार हाय रे जिंदगी।
लॉक डाउन में है गिरफ्तार सबकी जिंदगी।
जो जहाँ गया था,आज तक है वहीं फँसा।
पैदल है कोई आया,मजबूर हो कोई बसा।
ढूंढने गए थे रोजगार हाय रे जिंदगी।
लॉक डाउन में है गिरफ्तार सबकी जिंदगी।
सुजाता प्रिय'समृद्धि'
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज सोमवार 18 मई 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteमेरी रचना को सांध्य दैनिक मुखरित मौन में साझा करने के लिए सादर धन्यबाद भाई आपको।
Deleteसादर नमस्कार ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा आज मंगलवार (19 -5 -2020 ) को "गले न मिलना ईद" (चर्चा अंक 3706) पर भी होगी, आप भी सादर आमंत्रित हैं।
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कामिनी सिन्हा
मेरी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा " गले न मिलना ईद"चर्चा अंक में साझा करने के लिए हार्दिक धन्यबाद कामिनी जी!
ReplyDeleteवाह
ReplyDeleteजी सादर धन्यबाद
ReplyDeleteआता नहीं है माली, आता नहीं है मेहतर।
ReplyDeleteआता नहीं है नाई, आता नहीं है नौकर।
साफ करते खुद ही घर-बार हाय रे जिंदगी।
लॉक डाउन में है गिरफ्तार सबकी जिंदगी।।।
वाह !! सुजाता जी 👌👌👌👌🙏🙏🌹🌹
सादर नमन एवं धन्यबाद आपको रेणु बहन।
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