Monday, April 22, 2019

बचपन के दिन.. भाग १

हमजोली..

एक बार छुटपन में मेरे,
हुई बगल में शादी।
माँ- पिताजी के साथ वहाँ
गई मैं और दादी।

जगह- जगह पर बनी हुई थी,
मेहमानों की टोली।
आपस में सब बोल रहे थे,
तरह- तरह- की बोली।

दादी की टोली में,
बैठी- बैठी- मैं उकताई।
उनकी चिरपुरातन बातें,
समझ न मुझको आईं।

झट- जा बैठी-मैं,
पिताजी के साथ नर्मी से।
राजनीति की बहस छीड़ी थी,
वहाँ बड़ी सरगर्मी से।

सोची माँ की टोली में,
शायद मन लग जाए।
पर गहने- कपड़ों की,
तारीफें मुझे न भाईं।

रंग- बिरंगी तीतली जैसी,
दिखी हमजोलियों की टोली।
तोतली- मीठी बातों में ,
हो रही थी खूब ठिठोली।

उनके पास बैठ घुलमिल,
मन- ही- मन से बोली।
सबको भाता है रे मन,
हमउम्र- हमजोली।
       सुजाता प्रिय

4 comments:

  1. वाहह्ह्ह... बहुत सुंदर रचना..👌

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    1. बहुत-बहुत धन्यवाद स्वेता।

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  2. बेहद सशक्‍त लेखन ... आभार

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  3. बहुत धन्यवाद भाईजी ।सादर आभार।

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