जागने का वक्त आया,
ऐ मनुज तू जाग जा।
ऊषा सनहरी चेतना की,
ऐ मनुज तू जाग जा।
अधर्म की गहरी नींद में,
निर्लिप्त हो सोये बहुत।
दुराचरण के रंग- बिरंगे,
स्वप्न में खोये बहुत।
सदाचरण की किरण फूटी,
ऐ मनुज तू जाग जा।
छोड़कर भटकना कुपथ पर,
सुपथ पर बढ़ते चलो।
सत्कर्म की नई दिशा को,
प्यार से मढ़ते चलो।
दूःकर्म का तू खोल चोला,
ऐ मनुज तू जाग जा।
इंसानियत है धर्म तेरा,
प्यार कर इंसान से
इंसानियत की राह में,
होगा मिलन भगवान से।
हैवानियत को दूर कर दे,
ऐ मनुज तू जाग जा।
सुजाता प्रिय
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